“हिन्दी
अखबारों में अंग्रेजी भाषा का बढ़ता प्रयोग”
अनुक्रमणिका
Ø भूमिका
Ø हिन्दी का जन्म व विकास
Ø समाचार-पत्र व भाषा की शुरुआत
Ø हिंदुस्तान समाचार-पत्र का जन्म
Ø नवभारत टाइम्स समाचार-पत्र का जन्म
Ø हिंदुस्तान समाचार-पत्र की भाषा शैली
Ø नवभारत टाइम्स की भाषा शैली
Ø हिंदुस्तान समाचार-पत्र की परिशिष्ठ
Ø नवभारत टाइम्स की परिशिष्ठ
Ø समाचार-पत्रों मे उपयोग होने वाले कुछ अंग्रेजी शब्द
Ø अंग्रेजी शब्दों के हिंदीकृत शब्द
Ø अंग्रेजी समाचार-पत्रों का हिन्दी समचर-पत्रो पर प्रभाव
Ø अंग्रेजी शब्द का हिन्दी विभक्ति के अनुसार प्रयोग
Ø अंग्रेजी के शब्दों का हिंदिकरण
Ø निष्कर्ष
भूमिका
खड़ीबोली
पर आधारित हिन्दी के जिस मानक रूप की कल्पना सन 1950 के आसपास की जा रही थी, वह आज सत्य में परिवर्तित हो गई है।
समाचार में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी, अपनी एक अलग पहचान
रखती है। एक ओर हिन्दी भाषा का प्रतिनिधित्व करने के कारण समाचारों में हिन्दी
शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है तो दूसरी ओर समाचारों से जनसामन्य को अवगत
कराने की कोशिश करने के कारण सरल-से-सरल शब्दों को महत्व देने की कोशिश की जाती है, अतः सरल संस्कृत तथा बोल-चाल के उर्दू-अंग्रेजी शब्द अनायास चले आते हैं।
इसी प्रकार पाठकों की के नजरिय से वे संयुक्त अथवा मिश्र भी हो जाते हैं
विषयानुकूल तकनीकी शब्दावली का प्रयोग भी समाचारों में दृष्टिगत होता है तथा ऐसे
कुछ अन्य कारणों से समाचारों की भाषा से विशिष्ट हो जाता है और उसके
अध्ययन-विश्लेषण की आवश्यकता महसूस होने
लगती है।
भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास लगभग 160 वर्ष पुराना
है, वस्तुतः इनकी शुरुआत भारतेन्दु-युग से
ही मनी जा सकती है। इस काल में विभिन्न समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ, परंतु उसमे से अधिकांश साप्ताहिक थे। सन 1826 में प्रकाशित होने वाले
कलकत्ता के साप्ताहिक “ उदन्त मार्तंड ” से लेकर 1836 के “ प्रजापति ”, “ बनारस अखबार ”(1845), “मालवा अख़बार ”(1849), “ सार सुधानिधि ”, “ हिन्दी बंगवासी ”(1890) तक समाचार-पत्रों ने इस
युग में पर्याप्त किया तथा समाज की पर्याप्त सेवा की।
जिस प्रकार साहित्य की अलग भाषा होती
है, कार्यालयों की अलग भाषा होती है, फिल्मों की भाषा भी अलग होती है। उसी प्रकार समाचारों-पत्रों की भाषा का
महत्व भी अलग है। जहां एक ओर साहित्य की भाषा में तत्सम शब्दों की भरमार होती है
और कार्यालीन हिन्दी में पारिभाषिक शब्दावली की अधिकता होती है। वहीं समाचार-पत्रों की भाषा में आम
बोल-चाल देशज शब्दों का बाहुल्य होता है। असीमित दायरा होता है उसे अपनी बात चरवाहे से लेकर प्रोफेसर तक
पहुंचानी होती है, अतः उसे भाषा के तौर पर समंजस्य करके चलना
होता है।
चूंकि
वर्तमान समय में पूरे देश में एक ही ऐसी भाषा है जिसके बोलने, समझने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है।
हिन्दी भाषा न केवल भारत में बोली जाती है बल्कि विश्व के कई देशों में भी बोली
जाती
है। हिन्दी में वर्तमान में लगभग 17 बोलियाँ हैं। वे सभी
मिलकर हिन्दी कहलाती हैं, स्थानीय
समाचार-पत्रों में क्षेत्रीय बोलियों के शब्दों की भरमार होती है जो स्वाभाविक है।
राष्ट्रिय स्तर के पत्र इन सब बातों को को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय संस्कारण
भी निकालते है, नवभारत टाइम्स व हिंदुस्तान इनमें से प्रमुख
हैं।
भारत में पत्रकारिता के संबंध में
यदि हिन्दी की बात करें तो यहाँ परिवर्तनों ने लगातार नई चीजों को हमारे समक्ष प्रस्तुत
किया है। स्वतन्त्रता से पहले के अखबारों का मिशन लोगों को जागरूक करना तथा हिन्दी
भाषा का प्रचार व प्रसार करना था। लेकिन समय के साथ-साथ इसमें बदलाव आने शुरू हो
गए तथा पत्रकारिता अपने मूल सिद्धांतों से भटक कर दूसरा रास्ता अपना लिया। आज के
अखबार बाजारवाद और TRP के दौड़
में मानक हिन्दी शब्दों को भूलते जा रहे है और उनके ऊपर अंग्रेजी शब्दों का प्रभाव
बढ़ता जा रहा है।
अतः
मैं किशोर कुमार रॉय अपने इस परियोजना कार्य में “ हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी
भाषा का बढ़ता प्रयोग ” के
विषयगत ‘नवभारत टाइम्स’ तथा ‘हिंदुस्तान’ के जनवरी 2014 में प्रकाशित अखबारों की समीक्षा कर रहा हूँ।
समाचार-पत्र व भाषा की शुरुआत
ज्यों-ज्यों मानव एक
से दो, दो से
तीन और तीन से चार होते गए समूह, कबीलों, नगरों, महानगरों, राज्यों और
देशों की ओर अग्रसर हुआ, त्यों-त्यों
उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। जहां मनुष्य पहले एक कबीले तक सीमित था, अब वह एक कबीले से दूसरे कबीले में जा कर गुजर-बसर करने लगा। रोजी-रोटी
की तलाश में वह अब अपने स्थायी घर से सैकड़ों मील दूर हो गया,
नतिजन उसे राजी-खुशी, लेन-देन के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता पड़ी।
चूंकि वह तो बोलता ही था, अब उस
बोली का उसने आपसी समझौते से एक भाषा के रूप के बाद लिखाई के रूप में उसने कुछ
संकेत बनाए जो लिपि माने गए। अब लिपि और भाषा उसके पास थी,
लेकिन किस पर लिखे यह समस्या थी। जमीन पर, बालू पर लिख सकता
था। नतीजतन उसने कालिख की स्याही बनाई। मोर पंख के नुकीले हिस्से को लेखनी बनाया
और लिखने के लिए उसने सबसे पहले ‘पत्ते’ को चुना, पेड़ों की छाल को चुना। यही पत्ता कालांतर
में भोजनपत्र, ताम्रपत्र होते हुए कागज़ के रूप में विकसित
हुआ और अब पत्र कागज़ पर लिखा जाने लगा और अभी यह केवल व्यक्तिगत समाचार के रूप मे
ही व्यक्त हुआ, लेकिन ज्यों-ज्यों संचार और यातायात के साधन
विकसित होते गए, अब आदमी को एक-दूसरे से जुड़ने और
विचार-विनिमय की महती आवश्यकता हुई और फलतः समाचार-पत्रों का जन्म हुआ।
समाचार-पत्रों का प्रकाशन सबसे पहले
छठी शताब्दी में चीन में हुआ। हमारे देश में महान अशोक के शासन काल में साम्राज्य
के भिन्न प्रदेशों से समाचार एवं घटनाओं का वृतांत निश्चित समय पर भेजने का ऊल्लेख
मिलता है। मुगलों के शासन काल में भी पत्रकारिता का स्पष्ट ऊल्लेख है।
हिन्दी का जन्म व विकास
हिन्दी शब्द का जन्म संस्कृत शब्द सिंधु
से माना जाता है। ‘सिंधु’ सिंध नदी को कहते थे और उसी
आधार पर उसके आसपास की भूमि को सिंध कहने लगे।
यह सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’
और फिर ‘हिन्द’ हो गया और इसका अर्थ
हुआ –‘सिंध प्रदेश’।
अगर
भाषा की नजरिए से देखा जाए तो जब संस्कृत के अल्प प्रचलित अतः कठिन तत्सम शब्दों
का भी काफी प्रयोग होता है तो उसे हिन्दी या साहित्यिक हिन्दी कहते है।
हिन्दी का जन्म शौरसेनी अपभ्रंस से
हुआ है। हिन्दी भाषा का वास्तविक आरंभ 1000 ई से माना जा रहा है। हिन्दी के विकास
का इतिहास आज तक कुल लगभग पौने दो सौ वर्ष में फैला है। भाष के विकास की नजरिए से
(1975-1000) पूरे समय को तीन भागों में बाटा जा सकता है।
हिंदुस्तान समाचार-पत्र का जन्म
परिचय- यह 12 अप्रैल 1936 में शुरू हुआ था। इसका उद्घाटन
महात्मा गांधी ने किया था। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन छिड़ने पर ‘हिंदुस्तान’ लगभग 6
माह तक बंद रहा। यह सेंसरशिप के विरोध में था। एक अग्रलेख पर 6 हज़ार रुपए की जमानत
मांगी गई। देश के स्वाधीन होने तक ‘हिंदुस्तान’ का मुख्य राष्ट्रिय आंदोलन को बड़ावा देना था। इसे महात्मा गांधी और कांग्रेस
का अनुयाई माना जाता था। गांधी-सुभाष पत्र व्यवहार को हिंदुस्तान से अविकल रूप से
प्रकाशित किया। ‘हिंदुस्तान’ में
क्रांतिकारी यशपाल की कहानी कई सप्ताह तक रोचक दर से प्रकाशित हुई। राजस्थान में
राजशाही के विरुद्ध आंदोलन के समाचार इस पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे।
हैदराबाद सत्याग्रह का पूर्ण ‘हिंदुस्तान’ ने समर्थन किया। दैनिक ‘हिंदुस्तान’ का पटना (बिहार) से भी संस्कारण प्रकाशित हो रहा है।
प्रकाशन
स्थल- यह समाचार-पत्र उत्तर भारत में प्रकाशित होता है। दिल्ली
बिहार में (पटना, मुजफ्फरपुर, गया
और भागलपुर) झारखंड में (रांची, जमशेदपुर और धनबाद) उत्तर
प्रदेश में (लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, आगरा, इलाहाबाद, गोरखपुर, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़ और
कानपुर) और उतराखंड में (देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी)। इसके अलावा यह मथुरा, सहारनपुर और
फ़ैज़ाबाद से व प्रकाशित होता है।
नवभारत टाइम्स समाचार-पत्र का जन्म
नवभारत
टाइम्स दिल्ली और मुंबई से प्रकाशित होने वाला एक दैनिक समाचार-पत्र है। इसकी
प्रकाशन कंपनी बेनेट, कालमेन
एवं कंपनी है, जो द टाइम्स आफ इंडिया,
द इकोनॉमिक्स टाइम्स, महाराष्ट्र टाइम्स जैसे दैनिक अखबारों
एवं फिल्मफेयर व फेमिना जैसे पत्रिकाओं का प्रकाशन भी करती है। नवभारत टाइम्स इस
समूह के सबसे पुराने प्रकाशकों में से एक है।
दिल्ली
में करीब 4.23 लाख की प्रसार संख्या और 19.7 लाख की पाठक संख्या के साथ यह अख़बार
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में छाया हुआ है। हिन्दी मुंबई में चौथे स्थान की भाषा
मनी जाती है, इसके बावजूद ग्रेटर
मुंबई क्षेत्र में नवभारत टाइम्स की प्रसार संख्या 1.3 लाख और पाठक संख्या 4.7 लाख
है। इन दोनों शहरों में शुरू से ही नवभारत टाइम्स प्रथम स्थान पर है।
हिंदुस्तान समाचार-पत्र की भाषा शैली
शुरुआती वर्षों में हिंदुस्तान की वर्तनी
में सूचिन्तित नीति के तहत नसीकिए ध्वनियों, अनुस्वार के बजाए पंचाक्षर का प्रयोग दिखाई देता है।
40 के
दशक तक हिंदुस्तान की भाषा में आम तौर पर जनसामान्य द्वारा बोले जाने वाले शब्द भी
धड़ल्ले से इस्तेमाल होते है, जैसे
की पहनने की जगह ‘पहरने’, खायें की जगह
‘खावें’ आदि। 10 अगस्त 1942 के अंक में
पृष्ठ 4 पर सरकारी विज्ञप्तियों में छपा है कि “5 आदमी से अधिक एक जगह खड़े न पावें”।
इसी तरह 8 जनवरी 1943 संपादकीय का शीर्षक है –“खाने, पहराने
की समस्या”।
भाषा
शैली के मुद्दे पर जिस एक बिन्दु पर अक्सर वर्तमान हिंदुस्तान की आलोचना होती है
वह है अँग्रेजी शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग। हमे अपना व्याकरण मज़बूत रखना चाहिए और
विदेशी भाषाओं से थोड़ा पेरहेज ही रखना चाहिए। पटना संस्कारण के संपादक रहे वरिष्ठ
पत्रकार श्री आलोक मेहता का कहना है कि ‘मैं तो इसको ज़्यादा ठीक नहीं मानता जहां बहुत आवश्यक है, जैसे जहां ट्रेन का उपयोग करना है तो ठीक है चलन में ट्रेन का उपयोग कर
लिया, लेकिन जिस तरह से अँग्रेजी का उपयोग हो रहा है हिन्दी
अख़बारों में उसके पक्ष में मैं नहीं हूँ”।
नवभारत टाइम्स की भाषा शैली
नवभारत टाइम्स हिंदुस्तान के हिन्दी के सबसे आकर्षक
अख़बारों में से एक है। मुख्यतः यह 16 पेज का होता है लेकिन पेज़ लेखों व विषय के
हिसाब से घटते-बढ़ते रहते हैं। अखबार की भाषा बोल-चल की है मगर आम लोगों के भाषा नहीं
बल्कि मेट्रो शहर की भाषा है। नवभारत टाइम्स हिन्दी अख़बार तो है परंतु इसकी भाषा
हिन्दी नहीं है। इसमें अँग्रेजी,
उर्दू, अरबी और अन्य शब्द भी है जो लोगों में मानक होकर
प्रचलित भी है। आम जनता इसे आसानी से समझती है।
दूसरी भाषा से शब्दों को लेना बुरी बात नहीं है। इससे भाषा समृद्ध ही होती
है। शुरुआती दौर में जहां यह शुद्ध हिन्दी में थी, जिसे कम लोग समझ पाते थे व कई जगह में अल्पवस्था में भी आ जाते थे। परंतु
आज हिन्दी के परिवर्तित होने के कारण यह ‘हिंगलिश’ ज़्यादा अच्छे से समझी जाती है। इसमें अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से
होता है। हेडलाइन में भी इसका प्रयोग प्रचुरता से देखा जा सकता है।
‘ईस्ट वेस्ट करिडार’, ‘मेड सप्लाई करने वाला एजेंट अरेस्ट’, ‘किडनी रैकेट का सरकारी कनेकशन’, ‘फ्राइडे होगा फ्रीजिंग’
इत्यादि।
संक्षेप
में कहा जा सकता है कि नवभारत टाइम्स अख़बार जब शुरू हुआ था तो इसके पीछे एक सोच थी।
देश के लिए कुछ जज़्बा था और हिन्दी सेवा कि भी भावना थी। परंतु मुनाफा कमाने कि
बात भी कहीं दिमाग में थी लेकिन छोटे रूप में। परंतु आज सब ज़्यादा मुनाफा कमाने के
चक्कर मे हिंगलिश का प्रयोग ही करते जो ठीक तो है लेकिन हिन्दी के लिए विस्फोटक भी
बनी हुई है।
हिंदुस्तान समाचार-पत्र के परिशिष्ठ (supliments)
Ø तन-मन
:- इसमे स्वस्थ से संबन्धित सारी जानकरियाँ दी जाती है।
अच्छे खान-पान व शरीर को स्वस्थ रखने के उपाय बताए जाते हैं।
Ø अनोखी
:- इसमे महिलाओं से संबन्धित जानकरियाँ दी जाती हैं।
महिलाओं के उपलब्धियों के साथ-साथ उनके मनोबल व उत्साह को आगे बदने का कम भी ये
करता है।
Ø नई
दिशाएँ :- यह एक भोत ही ख़ास परिशिष्ठ है। इसमें युवाओं के कॅरियर
के बारे में दिया होता है जिसे पढ़ कर युवाओं को एक नई दिशा मिलती है।
Ø लाइफ
इस्टाइल :- इसमें पाठकों को जीवन के नई-नई शैली को जीने का रास्ता
बताया जाता है। ये पाठकों क अंडर एक नई उम्मीद जागता है।
Ø नेहरू
:- ये खासकर बच्चों पर के लिए होता है। इसमें बच्चों के
मनोरंजन के लिए छोटी-छोटी मनोहर कथाएँ तथा पेंटिंग्स बने होते हैं।
Ø तरक्की
:- इसमें विभिन्न प्रकार की जानकरियाँ होती हैं।
नवभारत टाइम्स के परशिष्ट(Supliments)
Ø हैलो
दिल्ली :- हैलो दिल्ली नवभारत टाइम्स का बालीवुड मुख्य संस्कारण है
जो सोमवार को छोड़ सप्ताह में 6 दिन प्रकिशित होता है। इसके अंतर्गत बालीवुड के
मसालेदार इंटरव्यू, घटनाएँ व
फिल्मों की जानकारी मिलती है। इसमे महिलाओं के जीवन,
टेलीविज़न व यात्राओं का मुख्य विवरण होता है।
Ø एनबीटी
प्रॉपर्टि एवं एनबीटी एजुकेशन :- इसके
अंतर्गत शिक्षा, व्यवसाय, संपति इत्यादि के बारे में जानकारी होती है इसमें पाठकों के सुझावों रुझानों
इत्यादि को प्रदर्शित किया जाता है इसमें उभरते फैशन ब्रांड व तकनीकों इत्यादि का
मुख्य वर्णन होता है।
Ø एनबीटी
एनसीआर :- इसके अंतर्गत दिल्ली के एनसीआर इलाकों की घटनाओं का
वर्णन किया जाता है साथ ही कृषि संबंधित जानकारियों को भी बताया जाता है जिसका
विवरण भी मुख्य रूप से एनसीआर में ही किया जाता है ।
समाचार-पत्रों
में उपयोग होने वाले कुछ अँग्रेजी शब्द
समाचार-पत्रों की भाषा के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि
इसमें अँग्रेजी के शब्दों का प्रयोग काफी मात्रा में होता है और उन शब्दों को इन
समाचार-पत्रों ने
‘दूध में पानी के समान’ मिला दिया है और अब तो ऐसा लगता है जैसे यह शब्दावली अँग्रेजी की न होकर
हिन्दी की ही हो ।
उदाहरण
के तौर पर:- ई॰एस॰आई॰, रिपोर्ट, सिनेमा, बम, फोन, प्रिंटिंग प्रैस, फाइरिंग, सिटी, गेस्ट हाउस, आपरेशन, स्पीड, टेलीफोन, इंचार्ग, गेट कीपर, गैस
सिलेंडर, बल्ब, क्लब, मेडिकल, कालेज, डी॰आई॰जी॰, लारी, ब्लेड आउट, प्राइवेट, ट्रेन, हाई कोर्ट, मार्च, गेट, पवेलियन, फायर ब्रिगेट, प्लाइवूड, फर्नीचर, ब्लेड, स्काउट, सप्लाई, फैक्टरी, यूनिट, ट्रक, वाट, लाइट, रैली, शेयर, मेटाडोर, स्कूटर, साइड, प्लैटफ़ार्म, नर्सिंग –होम,
ट्रेड यूनियन, बोनस, अल्टिमेटम, डेरी फार्म, वर्कशाप, रोड, इंजीनियरिंग, टेर्मिनल, फ्लाई
ओवर, बजट, ट्रांसपोर्ट, ब्रिगेड, कंपनी, प्रेस, स्टोरकीपर, डेलीगेट, इनटर्वल, सिनेमा, आइल, बोट क्लब, पैनल, यूनियन, मजिस्ट्रेट, लाइसेंस, जेल, नोटिस, वारंट, जज, केस, एजेंसी, ड्राइवर, पुलिस फोर्स, बी॰एड॰,
फाइल, कमेटी, ग्रुप, टैक्स, हाइडिल, बिल, ट्रान्सफार्मर, चालान आदि ।
अँग्रेजी शब्दों के हिंदीकृत शब्द
हिन्दी भाषा ने अँग्रेजी के बहुत से शब्दों को उनके
तत्सम रूप में स्वीकार कर लिया है। अत: उनका प्रयोग हिन्दी में उसी प्रकार किया
जाता है, जैसे की हिन्दी शब्दों का, यथा-रेल, स्टेशन, टाइम, कंपनी आदि।
इन शब्दों को हम हिन्दी के लिंग, वचन व विभक्ति लगाकर प्रयोग कर लेते है।
इसी प्रकार का प्रयोग समाचार-पत्रो की भाषा में भी मिलता है।
Ø “औधोगिक कॉम्प्लेक्स में बढ़ते हुए मजदूर असंतोष को देखते हुए हिन्दी
मजदूर सभा ने 1 जनवरी को काला दिवस मनाने का संकल्प किया। ”
(जन॰-27-12-83)
Ø “मंहगाई रोकने पर ज़ोर बजट ”
(नव॰-27-12-83)
Ø “वी॰पी॰ सिंह विपक्ष के बिना जीरो”
(जाग॰-29-4-88)
Ø कुछ अँग्रेजी शब्द ऐसे भी हैं, जिनके हिन्दी पर्याय
उपलब्ध होते हैं, परंतु समाचार-पत्र उनके लिए प्रायः अँग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग
करते हैं।
Ø “केंद्र सरकार ने गत अक्तूबर माह में
पंजाब में उग्रवादियों के हाथों मारे गए केन्द्रीय विभाग के एक इंस्पेक्टर के
आश्रित को दोनों के लिए 50 हज़ार रुपये की अनुग्रह-राशि स्वीकार की है।” (पंजाब
केसरी 21-12-83)
Ø “नानक निवास में कब्जा नहीं, कमरे एलाट हुए।”
(पंजाब केसरी 21-12-83)
Ø “फोटो लगाओ वोट दो।”(हिन्दु॰ 28-12-83)
उपुक्त समाचारों में, यद्धप्पी रेखांकित शब्दों के हिन्दी पर्याय क्रमशः ‘निरीक्षक’, ‘आवंटित’ तथा ‘चित्रा या तस्वीर’
उपलब्ध हैं, तथापि इनके स्थान पर अँग्रेजी शब्दों का ही
प्रयोग किया गया है।
Ø अँग्रेजी शब्दों के कुछ ऐसे प्रयोग देखे जा सकते
हैं जिसका हिन्दी पर्याय मिलता ही नहीं है। यदि मिलता भी है तो वास्तविक अर्थ नहीं
दे पता है, यथा- “महदिवेशन की कवरेज
के लिए विदेश से लगभग 40 पत्रकार यहाँ
आए हुए हैं। (हिन्दु॰ 28-12-83)
‘कवरेज’ शब्द का
हिन्दी पर्याय ‘समावेश’ वह भार प्रकट
नहीं करता जो ‘कवरेज’ कर पता है। अतः
कवरेज का प्रयोग बहुत ही सार्थक है। इसी प्रकार ‘रेजीमेंट’, ‘स्टेडियम’ आदि ऐसे शब्द हैं
जिंका इसी रूप में प्रयोग अधिक उचित प्रतीत होता है।
अँग्रेजी समाचार-पत्रों का हिन्दी
समाचार-पत्रों पर प्रभाव
चूंकि
मुद्रण काला का विकास सर्वप्रथम पशिचमी देशों में हुआ इसलिए पत्रकारिता की शुरुआत
भी वही से हुआ। अतः हिन्दी समाचार-पत्रों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।
समाचार-पत्रों की भाषा का अध्ययन करते समय हमें यह प्रभाव अन्य रूपों के साथ
अनुवाद के रूप एमआरएन भी प्राप्त होता है। जैसे-
India assaulted at Kranchi degarted
A group of six Indian muslims including
two women. Who went to karanchi and board on Indian Airlines Flight two days
ago were subjected to all treatment abuses and assaulted by the Kranchi Airport
Authorities and then deported to India.
(हिन्दू॰ 12.11.83)
शीर्षक –करांची में छह भारतियों के पिटाई –
नई
दिल्ली 11 नवम्बर,- छह भारतीय मुसलमानो के साथ
जो दो दिन पूर्व इंडियन एयर लाइंस से कारांची गए थे वहाँ के हवाई अड्डा अधिकारियों
ने बड़ा बदसलूकी किया। उन्हें गलियाँ दी, उनके साथ मर-पीट की गई और इसके बाद उन्हें भारत रवाना कर दिया गया। भारत
यात्रियों में दो महिलाएं भी थीं।
(हिन्दू
12-11-83)
इस उदाहरण से देखा जा सकता है कि समाचार अँग्रेजी के
समाचार-पत्र में अँग्रेजी के संवादाता द्वारा लाया जगया है और हिन्दी में हु-ब-हु
अनुवाद किया ज्ञ है। यह पूर्ण अनुवाद का उदाहरण है।
अँग्रेजी शब्द का हिन्दी विभक्ति के
अनुसार प्रयोग
देखा गया है कि समाचार-पत्र की भाषा में बहुत सारे शब्द
अँग्रेजी के प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन वाक्य बनाते समय उनमें विभक्ति, लिंग और वचन का प्रयोग किया है।
‘दिल्ली में ट्रक आपरेटरों ने हड़ताल रखी’
(अमर उजाला 7-10-88)
यहाँ पर शब्द आपरेटरों में हिन्दी व्याकरण के अनुसार
बहुवचन का प्रयोग किया गया है।
अँग्रेजी के शब्दों का हिन्दीकरण
कई बार देखा गया है कि समाचार-पत्रों की भाषा में आए
अँग्रेजी के शब्दों का थोड़ा-सा परिवर्तन कर उसका हिंदीकरण कर दिया जाता है। जैसे- ‘हास्पिटल’ को ‘हस्पताल’ बनाते हुए अस्पताल बना दिया। ‘आफिसर’ की जगह ‘अफसर’ कर दिया गया।
“नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कम श्री
शिवराज पाटिल को सौंपने से संकेत मिलता है कि कप्तान सतीश शर्मा कि सुनवाई प्रधानमंत्री
के यहाँ अब कम हो रही है।”
(नवभारत
टाइम्स 26-6-88)
‘कप्तान’ शब्द –कैप्टन
का हिंदीकरण किया गया है।
निष्कर्ष
दूसरी भाषा से शब्दों को लेना बुरी बात नहीं है। उससे
भाषा समृद्ध ही होती है। शुरुआती दौर में जहां ये समाचार-पत्र शुद्ध हिन्दी में थी, जिसे कम लोग समझ पते थे व कई जगह
अल्पव्यवस्था में भी आ जाते थे। परंतु आज हिन्दी के परिवर्तित होने के कारण यह ‘हिंगलिश’ ज्यादा अछे से समझी जाती है। भाष को आसान
बनाने और दूसरी भाषा को अपनाते-अपनाते कहीं हम अपनी ही भाषा के दुश्मन न बन
जायें। हम अपने भाषा के स्वरूप से
धीरे-धीरे दूर तो नहीं होते जा रहे हैं? हर जगह अंग्रेजी
शब्द का प्रयोग हो रहा है। विशेषांकोन में कई बार हैडिंग अंग्रेजी में ही रहती है।
अख़बार में पाठकों की चिट्ठी भी रीडर्स मेल बन गई है और ये भी बाकायदा अंग्रेजी
लेटर्स में छपती है। क्लासिफाइड वाला पृष्ट भी अंग्रेजी लेटर्स में ही छपता है।
मोटे तौर पर कहा जा सकता है। कि शुरुआती दौर में पत्रकारिता को एक मिशन के तौर पर
देखा जाता था, जिस मिशन में सामाजिक जागरूकता के साथ-साथ
हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना भी था। लेकिन वक़्त बदला और इसके ऊपर बाज़ारवाद
हावी हो गया अथवा अब ये प्रोफेशन के नजरिया से देखा जाने लगा। अधिक मुनाफा और
टी॰आर॰पी॰ के चक्कर में हिन्दी भाषा को हिंगलिश का स्वरूप दिया जा रहा है। जो कि
हिन्दी के लिए विस्फोटक साबित हो सकता है। अतः हमे इसपर नियंत्रण करना होगा।