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भूमिका
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एक परिचय –
निर्भया काण्ड
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16 दिसंबर गैंगरेप मामले का घटनाक्र
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क्यों बना
मीडिया का केंद्र - निर्भया काण्ड
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मीडिया और समाज का अनुलोम संबंध
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सामाजिक
जागृति/मीडिया की आवाज राजनैतिक गलियारो तक
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कमजोर समाज, न्यायपालिका और विधायिका
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न्यायपालिका मे
सुधार
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जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट
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लापरवाह पुलिस / बलात्कार
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न्यायपालिका में सुधार की सुगबुगाहट
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निष्कर्ष
एक परिचय – निर्भया काण्ड
रविवार का दिन था। मैं अपनी दोस्त के साथ साकेत
मॉल में इवनिंग शो फिल्म ‘लाइफ ऑफ पाई’ देख कर लौट रहा था। हमें साकेत से पालम मोड़ तक जाना था। पर कोई ऑटोवाला चलने को तैयार ही नहीं था। बड़ी मुश्किल से बिना मीटर के एक ऑटोवाला चलने को राजी हुआ। वहां से हम ऑटो में मुनीरका बस स्टैंड पहुंचे। हम दोनों बस स्टॉप पर खड़े बस का इंतजार कर रहे थे। मगर काफी देर तक कोई बस नहीं, आयी फिर इसी बीच बस स्टॉप पर
सफेद रंग की एक चार्टर्ड बस आकर रुकी। उस बस में सवार एक लड़के ने
ही हमें आवाज दी थी। हमारे पूछने पर उसने बताया कि बस पालम गांव की तरफ ही जा रही
है। लिहाजा हम दोनों बस में सवार
हो गये। जब हम बस में चढ़े, तो अंदर सवारी की सीट पर तीन लोग बैठे थे। हमें बाद में पता चला कि वो तीनों सवारी नहीं बल्कि सभी एक ही
ग्रुप के हैं। बस में चढ़ते ही मैंने उनसे
दो बार टिकट के लिए कहा, तो उन्होंने हमसे बीस रुपये
लिये बस चलने के कुछ ही देर बाद अचानक सवारी के तौर पर बैठे तीनों लड़कों ने हमारी
तरफ देख कर हमें उलटा-सीधा बोलना शुरू कर दिया। फिर जब वो काफी बदतमीजी करने लगे, तो मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उन तीनों की पिटाई कर दी। उन्होंने झगड़ा जानबूझ कर मुझे उकसाने के लिए ही किया था। क्योंकि झगड़ा होते ही दो और लोग जो पहले से ही बस में सवार थे
अचानक सामने आ गये और लोहे की रॉड से मुझ पर हमला कर दिया। रॉड सिर पर लगा था, इसलिए मैं बेहोश होने लगा। इसके बाद मैं इतना देख पाया कि वे लोग मेरी दोस्त को खींचते
हुए बस की पिछली सीट की तरफ ले जा रहे थे। इस दौरान मैं और मेरी दोस्त, दोनों ही मदद के लिए लगातार चिल्ला रहे थे। लेकिन कोई मदद को नहीं आया। यहां तक कि मेरी दोस्त मुझे बचाने के लिए खुद बीच में आ गयी। उसने उनसे मुकाबला किया उसने अपने मोबाइल से 100 नंबर पर पुलिस को कॉल करने
की कोशिश तो की, लेकिन बदमाशों ने उससे
मोबाइल छीन लिया।
हम अब पूरी तरह फंस चुके थे। उन लोगों ने बस की लाइट भी बंद कर दी थी। इस बीच मेरी दोस्त ने जितनी बार खुद को बचाने की कोशिश की, उतनी ही बार बदमाशों ने उस पर हमला किया। उसे बुरी तरह से मारा-पीटा पर इस दौरान पूरे रास्ते में एक बार भी कोई मददगार नजर नहीं
आया। आखिर दो घंटे बाद जब बदमाशों
की हवस पूरी हो गयी, तो शायद उन्हें ऐसा महसूस
हुआ कि मेरी दोस्त मर चुकी है, मैं सुन रहा था। वो आपस में बातें कर रहे थे कि लगता है लड़की मर गयी। इसलिए इसे भी यानी मुझे भी मार डालो इसके बाद मेरे ऊपर अचानक फिर से रॉड से हमला शुरू हो गया। मेरी दोस्त पूरी तरह बेहोश और लहूलुहान पड़ी थी। और मैं भी दम साधे चुपचाप बस की फर्श लेटा था, ताकि उन्हें ऐसा न लगे कि मुझमें अब भी जान बाकी है। इसके बाद उन लोगों ने मेरा और मेरी दोस्त का पर्स, बैग, मोबाइल सब कुछ ले लिया। फिर आखिर में उन्होंने हम दोनों के सारे कपड़े भी उतार लिये। रात करीब ग्यारह बजे महिपालपुर फ्लाइओवर के नजदीक चलती बस से
उन्होंने हम दोनों को नीचे फेंक दिया। वो हमें उसी बस से कुचल देना
चाहते थे। पर मैं किसी तरह अपनी दोस्त
को खींचते हुए चलती बस के पहिये से दूर ले गया।
इसके बाद वो बस को दौड़ाते हुए अंधेरे में गुम हो गये। अब हम दोनों पूरी तरह लहूलुहान सड़क किनारे पड़े थे। खून अब भी बह रहा था। जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था, ठंड भी बहुत थी। मैं किसी तरह हिम्मत कर हाथ
उठ-उठ कर लोगों से मदद की भीख मांग रहा था, ताकि कोई हम दोनों को अस्पताल पहुंचा दे। कोई हमें कपड़े दे दे। पर किसी ने हमारी मदद नहीं की इस दौरान वहां से बहुत से ऑटोवाले, कार वाले गुजरे, कइयों ने स्पीड कम करके
हमारी तरफ देखा भी, पर रुका कोई नहीं। शायद लोग इसलिए हमारी मदद नहीं कर रहे थे कि कहीं पुलिस केस या
गवाही के चक्कर में ना फंस जायें। बाद में वहां से गुजरने वाले
कई पैदल राहगीरों ने भी हमारी हालत देखी वो हमारे पास भी आये, खड़े भी हुए, पर सिर्फ तमाशबीन की तरह। बिना किसी मदद के करीब 20-25 मिनट तक
हम दोनों इसी तरह पड़े रहे। वक्त गुजरता जा रहा था और
बेहिसाब खून बह रहा था। मेरी दोस्त पूरी तरह से
बेहोश थी। पर मुझे अब भी अंदाजा नहीं
था कि उसे कैसे-कैसे और क्या-क्या जख्म मिले हैं? काफी वक्त हम यूंही सड़क
किनारे पड़े रहे। फिर कहीं जाकर एक शख्स ने
हमें देखा और उसी ने पुलिस को फोन किया। थोड़ी देर बाद ही मैंने देखा कि एक साथ
तीन-तीन पीसीआर वैन हमारे पास पहुंच गयी थी, लेकिन हमारी मदद करने की बजाय वो आपस में पहले ये तय कर रहे थे
कि हमारा मामला किस थाने में आयेगा? मैं तब भी लगातार चीख रहा था, चिल्ला रहा था। गिड़गिड़ा रहा था कि हमें
कपड़े दे दो, एंबुलेंस बुला दो, अस्पताल पहुंचा दो। पर थाने की सीमा के चक्कर में करीब आधे घंटे उन्होंने यूंही
जाया कर दिया।
आधे घंटे बाद कहीं जाकर वो लोग एक चादर लाये, जिससे मैंने अपनी दोस्त को ढका। उसकी हालत लगातार खराब हो रही थी, फिर मैंने किसी तरह उसे उठा कर पीसीआर वैन की सीट पर लिटाया और
उसके बराबर में खुद बैठ गया। वहां नजदीक ही एक अस्पताल भी
था। मैंने पुलिसवाले से कहा भी
कि मेरी दोस्त की हालत बिगड़ रही है, आप यहीं ले चलो. पर पुलिस वाले हमें वहां से बहुत दूर सफदरजंग अस्पताल ले गये। वहां पहुंचने में हमारा काफी वक्त बरबाद हो गया। अस्पताल
पहुंचने के बाद भी हमारी किसी ने मदद नहीं की बहुत देर तक मैं लोगों से एक अदद कपड़ा मांगता रहा, पर किसी ने कपड़ा तक नहीं दिया। मैंने कहा कि ठंड लग रही है, कंबल नहीं तो दरवाजे, खिड़की पर पड़ा पर्दा ही दे
दो। सफाईवाले तक से मदद मांगी, पर किसी ने मदद नहीं की फिर किसी तरह मैंने एक आदमी से उसका मोबाइल मांगा और अपने घर
फोन किया। मैंने घरवालों को यही बताया
कि हमारा एक्सीडेंट हो गया है। असल में मुझे समझ में ही
नहीं आ रहा था कि मैं उनसे क्या बोलूं? दोस्त के साथ फिल्म देख कर
लौटने की बात बता नहीं सकता था। अस्पताल पहुंचने के बाद पहली
बार मुझे पता चला कि मेरी दोस्त के साथ क्या हुआ है। जानवरों से भी बदतर सुलूक किया था उन्होंने उसके साथ वो बोलने
तक की हालत में नहीं थी। तब मैंने उससे लिख कर पूछा
कि उसे क्या हो रहा है? उसने जवाब दिया कि उसे इलाज
के खर्चे का टेंशन है। बहुत पैसे खर्च हो जायेंगे। हां, उसने ये भी लिखा था कि उन
बदमाशों को फांसी नहीं बल्कि जिंदा जला कर मारा जाये। सफदरजंग में मैं अपनी दोस्त से लगातार मिलता रहा। उसे ये भी बताया कि कैसे पूरा देश उसके लिए लड़ रहा है। वो उन गुनहगारों के बारे में भी मुझसे पूछती थी कि उनका क्या
हुआ? मैंने उसे बताया कि सभी पकड़े गये। हां, उसे इलाज के खर्च की बड़ी चिंता थी। हमेशा पूछती रहती थी कि कितना खर्च हो जायेगा? मैं उससे यही कहता था कि खर्च की फिक्र मत करो। बस तुम ठीक हो जाओ हालांकि, खुद मेरे हाथ-पैर जख्मी थे। पैर की हड्डी टूटी हुई थी। लेकिन 16 दिसंबर की उस रात से ही अगले
तीन-चार दिनों तक पुलिस ने मुझे थाने में ही रखा। सच बताऊं तो जिस दिन एसडीएम मेरी दोस्त का बयान ले रही थीं, उस रोज मुझे पहली बार मेरी दोस्त पर हुए जुल्म का पूरा सच पता
चला। इतनी क्रूरता तो जानवर भी
नहीं कर सकता। वो भी शिकार को गला दबा कर
मार डालता है। मगर यहां तो जो हुआ उसके
बारे में कहा भी नहीं सकता।
16 दिसंबर गैंगरेप मामले का घटनाक्रम
16,दिसंबर को राजधानी दिल्ली में चलती बस में एक लड़की से हुये सामूहिक बलात्कार मामले में यहां एकअदालत ने आज चारों दोषियों को मौत की सजा सुनायी है। पूरे मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है।
*16 दिसंबर 2012: छह लोगों ने एक निजी बस में एक पैरामेडिकल छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया, उसपर बर्बर तरीके से हमला किया तथा उसे उसके पुरुषमित्र के साथ वाहन से बाहर फेंक दिया। उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया।
* 17 दिसंबर: कड़ी कार्रवाई को लेकर बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरु हुए, पुलिस ने चार आरोपियों बस चालक रामसिंह, उसके भाई मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पहचान की।
* 18 दिसंबर: राम सिंह और तीन अन्य को गिरफ्तार किया गया।
* 20 दिसंबर: पीड़ित के मित्र ने बयान दर्ज कराया।
* 21 दिसंबर: किशोर अपराधी को दिल्ली में आनंद विहार बस टर्मिनल से पकड़ा गया। पीड़ित के मित्र ने एकअपराधी के तौर पर मुकेश की पहचान की। पुलिस ने छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को पकड़ने के लिए हरियाणा और बिहार में छापे मारे।
22 दिसंबर: ठाकुर बिहार के औरंगाबाद से गिरफ्तार, उसे दिल्ली लाया गया। अस्पताल में एसडीएम के सामने पीड़ित ने बयान दर्ज कराया।
* 23 दिसंबर: प्रदर्शनकारियों ने घटना के खिलाफ सड़कों पर उतरकर निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया। कांस्टेबलसुभाष तोमर को गंभीर चोटों के साथ अस्पताल ले जाया गया।
* 25 दिसंबर: डाक्टरों ने पीड़ित की स्थिति को गंभीर बताया। इस बीच, कांस्टेबल तोमर ने दम तोड़ा।
* 26 दिसंबर: सरकार ने दिल का दौरा पड़ने के बाद पीड़िता को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल ले जानेका फैसला किया।
* 29 दिसंबर: पीड़ित ने देर रात सवा दो बजे दम तोड़ा। पुलिस ने प्राथमिकी में हत्या का आरोप जोड़ा।
* 2 जनवरी 2013: प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने इस मामले के शीघ्र निबटारे के लिए त्वरित अदालत काउद्घाटन किया।
*3 जनवरी: पुलिस ने हत्या, सामूहिक बलात्कार, हत्या के प्रयास, अपहरण, अप्राकृतिक यौन संबंध और डकैतीसहित अन्य आरोपो में पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
* 5 जनवरी: अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लिया।
* 7 जनवरी: अदालत ने बंद कमरे में कार्यवाही का आदेश दिया।
* 17 जनवरी: त्वरित अदालत ने पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही शुरु की।
* 28 जनवरी: किशोर न्यायिक बोर्ड ने कहा कि आरोपी का नाबालिग होना साबित हो गया।
*2 फरवरी: त्वरित अदालत ने पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये।
* 28 फरवरी : बोर्ड ने नाबालिग के खिलाफ आरोप तय किये।
* 11 मार्च: राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी की
* 22 मार्च: दिल्ली उच्च न्यायालय ने त्वरित अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग के लिए राष्ट्रीय मीडिया को अनुमति दी।
* पांच जुलाई: इस मामले तथा लूटपाट के मामले में किशोर के खिलाफ न्याय बोर्ड में जांच (सुनवाई) पूरी। बोर्डने फैसले के लिए 11 जुलाई की तारीख तय की।
*आठ जुलाई: त्वरित अदालत ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किये।
* 11 जुलाई: बोर्ड ने नाबालिग को इस जुर्म का दोषी पाया कि वह कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की घटनामें शामिल होने से पहले 16 दिसंबर की रात एक बढ़ई को बंधक बनाकर उससे लूटपाट में शामिल था। दिल्लीउच्च न्यायालय ने तीन अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों को मामले की कवरेज की अनुमति दी।
* 22 अगस्त: त्वरित अदालत ने चार वयस्क आरोपियों के खिलाफ अंतिम जिरह पर सुनवाई शुरु की।
* 31 अगस्त: किशोर बोर्ड ने नाबालिग को सामूहिक बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया और उसे सुधारगृह में तीन साल की सजा दी।
* 10 सितंबर: अदालत ने मुकेश, विनय, अक्षय और पवन को सामूहिकबलात्कार, अप्राकृतिक दुष्कर्म तथा लड़की,की हत्या और उसके पुरुष मित्रकी हत्या के प्रयास सहित 13 आरोपों में दोषी ठहराया।
* 11 सितंबर: अदालत ने सजा की अवधि तय करने संबन्धी दलीलें सुनने के बाद सजा सुनाने के लिये 13 सितंबर की तिथि तय की।
* 13 सितंबर: अदालत ने चारों दोषी व्यक्तियों को मृत्युदंड की सजा सुनायी।
क्यों बना मीडिया का
केंद्र - निर्भया काण्ड
आजाद
प्रिंट मीडिया प्रजातंत्र की सबसे मजबूत बुनियाद के रूप मे है। यह आम जनता की ताक़त
है दामिनी बलात्कार का मुद्दा ही लीजिये यह किस्सा भी अन्य हजारों उन मुद्दों की
तरह फाइल में दब कर ख़त्म हो गया होता परन्तु इसे प्रिंट मीडिया ने ही इस केस की
गंभीरता को समझते हुए पुरे राष्ट्र को न सिर्फ जगाया अपितु हर देशवासी की आत्मा को
झकझोर कर रख दिया तथा दामिनी को संपूर्ण न्याय दिला कर ही दम लिया इसी प्रकार
जेस्सिका लाल ,प्रियदर्शनी मट्टू ,नितीश कतर जैसे मुद्दे भी लगातार मीडिया के सजग रहते अपने
सही अंजाम तक पहुँच सके समय समय पर यह प्रिंट मीडिया नारी के अधिकारों के लिए लड़ा
यदि प्रतिबन्ध ही लगाना है तो इन्टरनेट की पोर्नोग्राफिक साईट पर लगाया जाना चाहिए
जिसे देखकर हमारे देश का मासूम अब मासूम न रहकर कुत्सित मानसिकता से ग्रसित
बलात्कारी में तब्दील होता जा रहा है।
जहाँ तक दंगो का सवाल है यह
तो जग जाहिर ही हो चूका है की दंगे
सत्ता के दबाव में आकर प्रशाशन की निष्क्रियता की वजह से फैले न की मीडिया द्वारा
इतिहास गवाह है इस बात का की जब जब दंगे हुए किसी न किसी राजनितिक स्वार्थ की वजह
से हुए प्रिंट मीडिया में हर एक जन एक सजग पत्रकार की भूमिका निभाता है वह अन्य
मीडिया की भांति पक्षपात नहीं करता तथा अपने स्वतंत्र विचार प्रस्तुत करता है उस
पर नियंत्रण करना विचारों की अभियक्ति का सेध सीधा सीधा हनन होता है। बॉम्बे का
उदहारण लीजिये दो लड़कियों के एक राजनेता की मौत पर टिपण्णी देने पर हिरासत में
लेने पर स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर विचारों की अभिव्यक्ति का हवाला देते
हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था।
किसी
के अर्तॊन बनाना कोई निजता का हनन नहीं मना जा सकता यह तो सदियों से होता आया है
उल्टा दुसरे रूप में देखा जाय तो यदि आप सही हैं तो आपकी प्रसिद्धि और बढ़ती जाएगी
एक समय ऐसा भी था। जब नेता साफ़ छवि के हुआ
करते थे वे स्वयं पत्रकार से कहा करते थे की बड़े दिनों से उनका कोई कार्टून नहीं
बनाया गया किसी पत्रिका में
इन सभी बातो से ये ही निष्कर्ष निकलता है की यह
मीडिया ही है जिसने समय समय पर महिलाओं को न्याय दिलाया महिलायों के हक की खातिर
लड़ा सामाजिक बुराइयों को उजागर कर समाज को मंथन करने को मजबूर कर दिया साथ ही साथ आपत्तिकाल
में देश को एकजुट किया।
एक बार मैं फिर इस बात पर
जोर देना चाहूँगा की अगर प्रतिबन्ध ही लगाना है तो देश भर में बेलगाम होते फिल्मे
अश्लील गाने तथा सबसे महत्वपूर्ण पोर्नोग्राफिक साइट्स पर पुर्णतः प्रतिबन्ध लगाए
जिसने हमारे मासूम बच्चों को बलात्कारी और हत्यारा बना कर रख दिया इसे कार्य रूप
में परनीत करने से हमारे देश में बलात्कार तथा हत्याओं के प्रतिशत में जबरदस्त
गिरावट आएगी और हमारा युवा पथ भ्रमित होकर भटकने के बजाय
मुख्या धारा में आकर देश की तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम होगा।
मीडिया और समाज का अनुलोम संबंध
निर्भया गैंग रेप के बाद पुलिस सक्रिय
दिखने लगी है। काले सीसे वाली करो कि जांच पड़ताल के साथ–साथ वहाँ
चालको से जगह–जगह पूछताछ कि जाने लगी है। लेकिन अहम
सवाल यह भी है कि दिल्ली पुलिस राजधानी मे जघन्य आपराधिक घटना के बाद ही सक्रिय
क्यो होती है ? यह सक्रियता भी तभी तक नज़र आती है जब तक घटना चर्चा मे रहती
है। उसके बाद पुलिस फिर वही अपना पुराना ढुलमुल रवैया अपना लेती है। ऐसा मानो कि
पुलिस प्रशाशन कि नीद मे शायद ऐसी घटनाओ के बाद ही कोई खलल पड़ता है। यह सही है कि
पुलिस बलात्कार या अन्य किसी आपराधिक घटना होने से पहले वह नहीं पहुच सकती है मगर
व गस्त बढ़ाने के साथ ही अपराधियो को पकड़ने मे मुस्तैदी दिखाने और उन्हे सजा दिलाने
के लिए पुख्ता सबूत जुटाकर उनके मन मे खौफ़ तो पैदा कर ही सकती है। जिससे किसी भी
घटना को अंजाम देने कि हिम्मत न हो सके ।
सरकार की तरफ से घोषडा की गयी की
बलात्कार पीड़ितो के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनवाई जाएगी। मगर यह दिल्ली मे बलात्कार
की पहली बार की गयी है। अब सवाल यह उठता है की जनता आखिर इस पर अमल कब और कैसे
करे। ?
गौरतलब है की निर्भया काण्ड के तीन महीने पहले मुख्य मंत्री महिलाओ पर घरेलू हिंसा
के खिलाफ 5 फास्ट ट्रैक कोर्ट की घो डा कर चुकी थी ।
यह हाल तब है , जब दिल्ली और केंद्र ,दोनों
जगहो पर कॉंग्रेस की सरकारे है । खुद एक महिला होने के बावजूद मुख्यमंत्री प्रदेश
की महिलाओ की सुरक्षा का भरोसा दिला पाने मे नाकाम साबित हो रही थी । दिल्ली मे
महिलाओ के प्रति अपराध का ग्राफ घटने की जगह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ।
तमाम दावो के बावजूद महिलाओ को पुलिस
अपनी मददगार नहीं महसूस होती है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है –भारत की
राजधानी मे महिला थाने न के बराबर है , महिला डेस्क मे भी महिला अधिकारी की जगह
पुरुष अधिकारी नज़र आते है । यही नहीं अभी तक सारी की सारी महिला हेल्प लाइन व
हक्सिंग हेल्प लिने भी पूरी तरह निसक्रिय साबित हुई है । वही महिला थाना अध्यकछ का
न होना और थाने मे पाहुचने के बाद पीड़िता का पुरुष अधिकारिओ की ओर से पूछताछ को
गुजरने को मजबूर होना ,ये कुछ ऐसे तथ्य है जिनके चलते पुलिस
महिलाओ का विश्वास नही जता पा रही है । निर्भया गैंग रेप के विरोध मे सामाजिक
जागृति देखने को तब मिली जब दिल्ली मे मुख्य मंत्री आवास ,पुलिस
मुख्यालय ,जंतर-मंतर समेत कई जगहो पर दिन भर प्रदर्शन
होते रहे । विरोध प्रदर्शन मे सामिल भाजपा महिला मोर्चा , व युवा मोर्चा ऑल इंडिया स्टूडेंट
असोशिएशन ( आईसा ) ,आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेन्स असोशिएशन ( एआईडीडब्लूयू ), एवीवीपी समेत कई संघठनों ने इसमे
संलिप्त सभी छह आरोपीयो के खिलाफ कठोर कार्यवाही की मांग की है । प्रदर्शनकारियों
ने राजधानी मे महिलाओ को सुरक्षित रख पाने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया ।
दिल्ली मे महिलाओ के खिलाफ तेज़ी से बढ़ती
हुई वारदातो के मद्देनजर उत्तर रेलवे ने महिला स्पेश्ल रेल गड़िया और स्थानीय ईएमयू
रेल गाड़ियो मे यात्रा करने वाली महिलाओ को सुरक्षा उपलब्ध कराने के उपाय बढ़ा गया
है । यह जानकारी एक विज्ञप्ति मे दी गयी थी ।
उत्तर रेलवे ने महिला स्पेश्ल रेल गाड़ियो
और अन्य स्थानीय रेल गाड़ियो के महिला डिब्बो मे यात्रा करने वाली महिलाओ को
सुरक्षा देने के लिए उपाय किया गया है। रेल सुरक्षा बल मे 76 महिला जवान तैनात है। रेल गाड़ियो मे महिलाओ की सुरक्षा और दोषियो से
निपटने के लिए पाँच विशेष “ भैरवी ” दलो का गठन किया है। इस दल मे रेलवे सुरक्षा बल के महिला और पुरुष जवान और टिकट
जांच दल के कर्मचारी शामिल है। इन विशेष रेल गाड़ियो और महिला डिब्बो मे पुरुष
यात्रियों को जवानों की जांच करने के निर्देश दिया गया था।
दोषियो पर कार्यवाही करने के लिए विशेष
अभियान चलाए जाते है। साल 2012 में जनवरी से नवंबर के दौरान 7127 दोषियो को रेलवे अधिनियम की धारा 162 के तहत गिरफ्तार करके उन पर कार्यवाही की गयी। ऐसे 6995 दोषियों से जुर्माने के रूप मे 19,72,450 रूपये वासूल किए गए। 130 लोगो पर मुकदमे चलाए जा रहे है। दोषी
साबित होने पर इन्हे कमसे कम 15 दिनो के कारावास पर भेजा जा सकता है। इस समस्या से निपटने के
लिए राजकीय रेल पुलिस और स्थानीय पुलिस के साथ मिल कर बैठके आयोजित की जा रही है।
उत्तर रेलवे ने सभी पुरुष यात्रियों से अनुरोध किया है कि वे महिला स्पेश्ल रेल
गाड़ियों और अन्य रेल गाड़ियों के महिला डिब्बो में यात्रा न करे। समूहिक बलात्कार की घटना के बाद बच्चों के एक
समूह ने राष्ट्रपति “प्रणव मुखर्जी” को लिखा है। “ इन लोगो ने दीदी के साथ जो किया है, उसके लिए
इन बुरे लोगो को जेल में डाल देना चाहिए और उनकी अंतिम सांस तक इन्हे बंद रखा जाना
चाहिए।” इस घटना से
गुस्साए बच्चों ने अपने पत्र में लिखा है “हमे आशा है कि आप और सरकार इन बुरे लोगो को सजा देने के कड़े कदम उठाएंगे।
हम बच्चे आपको बताना चाहते है कि हम नाराज़ है, इसलिए हम चाहेंगे कि इन लोगो को फांसी
दे डि जाए ” यह पत्र दिल्ली बाल अधिकार क्लब के
बच्चों ने लिखा है। संस्था के मुताबिक दिल्ली और आसपास के 6000 बच्चो ने हस्ताक्षर किए ।
सामाजिक जागृति/मीडिया की
आवाज राजनैतिक गलियारो तक
दिल्ली गैंगरेप के बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने से हम उन सभी महिलाओं
को न्याय दिला सकते हैं जो लोक-लज्जा के भय से बलात्कार की घटना को
छुपाती हैं। क्या हम सोनी सोरी, मनोरमा और शोफिया जैसी हजारों बलात्कार पीडि़ताओं को न्याय दिला पायेंगे।
राष्ट्रीयता के आत्मनिर्णय के अधिकार और अपनी जीविका के संसाधनों जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए शासक वर्ग के खिलाफ लड़ रही महिलाओं का बलात्कार, हत्या कर दो और बदले में वीरता का पुरस्कार पाओ।
क्या इन बलात्कारियों को कभी फांसी की सजा होगी। क्या कभी रुचिका गिरहोत्रा, भंवरी देवी, गीतिका शर्मा के हत्यारों को फांसी की सजा हो सकती है या उनके लिंग काटे
जा सकते हैं? क्या वे पूरे जिन्दगी जेल
में रह सकते हैं?
कभी-कभी सिविल सोसाइटी के दबाव के कारण जेसिका लाल या प्रियदर्शनी मट्टू के
हत्यारों की सजा हो भी जाती है, तो वे जेल में अतिथि बन कर रहते हैं और जब-तब पैरोल पर बाहर आते रहते हैं। दिल्ली सामूहिक बलात्कार काण्ड की शिकार दामिनी
के बलात्कारियों को कठोर से कठोर सजा होनी चाहिए, लेकिन वह सजा हर बलात्कारियों को होनी चाहिए। इस
कांड में जो छह आरोपित पकड़े गये हैं कोई अरबपति, राजनेता या नौकरशाह नहीं हैं, न ही शासक वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए इनको जल्द से जल्द सजा होगी। ये पूरी जिन्दगी जेल में रहेंगे और उनको फांसी की सजा भी होगी ।
इनको सजा देकर शासक वर्ग और उनका प्रचार तंत्र भारत का मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर कहेगा कि देखो बलात्कारियों को सजा दे दी गयी। क्या इससे देश की उन सभी
महिलाओं को न्याय मिल जायेगा जो सत्ता द्वारा या अपरोक्ष रूप से सत्ता में बैठे
लोगों की हैवानियत की शिकार हुई हैं और जिसका पूरा परिवार बर्बाद हो चुका है? मणिपुर में मनोरमा के
बलात्कारियों को सजा दिलाने के लिए महिलाओं ने असम राइफल्स के गेट पर नंगे होकर
प्रदर्शन किया और भारतीय सेना को चुनौती दी कि “आओ हमारा बलात्कार करो” क्या किसी को सजा हुई?
जब किसी अरबपति-खरबपति, माफिया सरगना, ऊंची जाति, अफसरशाह, नेता या उसके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा ऐसी काली करतूत की जाती है, तो पीडि़ता के ही चरित्र पर
सवाल उठाये जाते हैं। प्रताडि़त महिला का चरित्र ही गलत है, वह पैसा चाहती है, सुर्खियां बटोरने के लिए यह सब कर रही है, डॉक्टरी रिपोर्ट का इंतजार करो, मीडिया पर ध्यान मत दो, बेचारे को झूठा फंसा रही है, आदि, आदि कह कर लोगों को
दिग्भ्रमित किया जाता है, ताकि आम जनता पीडि़ता को ही दोषी मानने लगे।
बलात्कार के सामाजिक आधार को देखें तो यह सामंती युग की बर्बरता है। किसी
से बदला लेना हो, नीचा दिखाना हो तो उसके घर के महिलाओं के साथ बलात्कार करो। सामंती
युग की इस बर्बरता को पूंजीवादी उपभोक्तावादी संस्कृति और बढ़ावा देती है। गुजरात
दंगों में विशेष समुदाय की महिलाओं का यौन शोषण किया गया, उनके पेट को चीरकर भ्रूण को
काट दिया गया। यह किस सभ्य समाज की निशानी है? हमें शासक वर्ग को सरलीकरण का रास्ता दिखाते हुए उसे और दमनकारी बनाने की
मांग नहीं करनी चाहिए।
बलात्कार इस समाज के जड़ में निहित है। सत्ता
के शीर्ष पर हों या कानून के रखवाले, उनकी हजारों साल की सोच में यह रचा -बसा है कि महिला उपभोग की वस्तु है। पंजाब
के पुलिस महानिदेशक के.पी.एस. गिल द्वारा भारतीय महिला प्रशासनिक अधिकारी को पार्टी में छेड़ना हो या
राजस्थान में महिला पुलिस का उसके सहकर्मियों द्वारा थाने में बलात्कार किया जाना
या एक मजदूर द्वारा अपनी बेटी का बलात्कार, सभी इस पुरुषवादी मानसिकता को दर्शाते हैं।
भाजपा शासित गुजरात हो या सपा-बसपा शासित उत्तर प्रदेश या कांग्रेस शासित प्रदेश हों, हर राज्य में बलात्कार की
घटनायें सत्ताधीशों या उनके संरक्षण में होती हैं। अपने
को सर्वहारा का हितैषी बताने वाली सीपीएम के राज्य बंगाल के सिंगूर में सीपीएम
कार्यकर्ताओं द्वारा सिंगुर आन्दोलन की नेत्री तापसी मलिक का बलात्कार फिर उसकी
हत्या हो या नन्दीग्राम में सीपीएम नेताओं, कार्यकर्ताओं द्वारा महिलाओं के बलात्कार, सभी इसी श्रेणी में आते हैं।
लेकिन इस मामले में महिला नेताओं की सोच भी पुरुषों से अलग नहीं है, जैसा कि मध्य प्रदेश के
सेमिनार में एक महिला वैज्ञानिक डॉ. अनीता शुक्ला का ये कहा जाना कि ‘लड़की आधी रात में ब्वायफ्रेंड के साथ क्या कर रही थी, क्यों घूम रही थी’ यहां तक कि उन्होंने 'लड़की को आत्मसमर्पण कर देना
चाहिए था' की बात भी कह डाली। दिल्ली
की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा महिलाओं को अकेले घर से न निकलने और कपड़े ठीक
से पहनने की नसीहत दी जाती है। यहां तक की सीपीएम पोलित
ब्यूरो सदस्य वृंदा कारत द्वारा नन्दीग्राम बलात्कार में पीडि़ता की मद्द करने के
बजाय अपने पार्टी को बचाने वाला बयान दिया गया कि 'दस के साथ नहीं, चार औरतों के साथ बलात्कार हुआ है'
देश में अभी भी खाप पंचायत लड़कियों को लेकर तुगलकी फरमान सुनाते रहती हैं
कि लड़कियों को जींस नहीं पहननी चाहिए, मोबाईल नहीं रखना चाहिए, लड़कों से बात नहीं करनी चाहिए. प्रेम विवाह करने पर उनको फांसी जैसी सजा देने का फरमान भी हमारे देश की खाप पंचायतें अक्सर सुनाती रहती हैं।
हरियाणा के मंत्री द्वारा यह बयान दिया जाता है कि 'लड़कियों को बलात्कार से बचाने के लिए कम उम्र में शादी कर देनी चाहिए। तालिबान को बुरा मानने वाले
लोग तालिबानी अंदाज में सजा देने को जायज ठहरा रहे हैं कि बलात्कारियों को जनता के
हवाले कर दो। क्या इससे अरब देशों में बलात्कार की घटनाएं बंद हो गई हैं? इस तरह के कानून से हिंसा और
बढ़ेगी। बलात्कारी सबूत मिटाने के लिए पीडि़ता को मार डालेंगे।
पुरुषवादी मानसिकता की ही सोच है कि देश के प्रधानमंत्री से लेकर
गृहमंत्री तक बेटियों का बाप होने का एहसास दिलवाकर जनता की अवाज को चुप कराना
चाहते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र एवं कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी का
बयान की ‘‘खूबसूरत लड़कियां सज-धज कर विरोध करने पहुंचती
हैं.‘‘ 'तहलका' मैगजीन द्वारा एनसीआर के कई
थानेदारों का इंटरव्यू छापा गया था जिसमें कानून के रखवाले, बलात्कारियों को पकड़ने वाले
बलात्कार के लिए लड़कियों को ही जिम्मेदार बता रहे थे। लड़कियां
कम कपड़े पहनती हैं, भड़काऊ कपड़े पहनती हैं, लड़कों से हंस-हंस के बातें करती हैं, जैसी बातों को बलात्कार के
लिए उकसाने वाला कहा है।
दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ इंडिया गेट पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन
करने वाली लड़कियों को पुलिस की भद्दी गालियों का शिकार होना पड़ा। यह किस
समाज और किस मानसिकता का परिचायक है? क्या यह यौन उत्पीड़न नहीं है इसके लिए क्या सजा होगी और कौन सजा देगा? दिल्ली में हुए सामुहिक
बलात्कार के बाद देशभर में यौन हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक जिस 72 घंटे प्रदर्शनकारी दिल्ली के इंडिया गेट पर आंसू गैस के गोले, लाठी चार्ज और ठंड में भी
पानी की बौछारों का सामना करते रहे, उसी 72 घंटे के दौरान देश में 150 बलात्कार की घटनाएं हुईं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी बलात्कार पीडि़ता को न्याय मिलेगा, इसकी भी संभावना कम है। पुलिस
निर्दोष लोगों को पकड़कर कोर्ट में प्रस्तुत करेगी और अमीर घरानों के दरिन्दे साफ
बचे रहेंगे। ऐसा बम कांडों में निर्दोष मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी से पता चलता है। ज्यादातर जज भी इसी पुरुष प्रधान समाज से आते हैं। भंवरी
देवी के केस में जज ने माना ही नहीं कि कोई ऊंची जाति का व्यक्ति छोटी जाति की
महिला का बलात्कार कर सकता है।
आज शासक वर्ग की हर मशीनरी पंगु हो चुकी है, उससे हम कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वह किसी कमजोर वर्ग की पीडि़ता को
न्याय दे पायेगा। आम जनता के विरोध और गुस्से को सही राजनीतिक और सामाजिक दिशा देनी होगी। उस
असफलता को छिपाने के लिए हम भावावेश में आकर इस दमनकारी शासक वर्ग से ऐसी मांग न
कर दें जिससे आम जनता को ही नुकसान हो। पितृसत्तात्मक समाज को
बदलने के लिए लड़कों को बचपन से ही यह बताना पड़ेगा कि क्या गलत है क्या सही, ताकि उन पर सकारात्मक प्रभाव
पड़े।
वही दूसरी ओर लड़कियों के दिमाग में बचपन से ही डालते हैं कि तुमको कैसे बैठना है, कैसे रहना है जो कि उन पर एक
नकरात्मक प्रभाव छोड़ते है। कुल मिलाकर हमें एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण की लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा, जहा हर
प्रकार के विभेद महिला व पुरुष समेत विभेद के बीच शोषणों का खात्मा होना चाहिए ।
कमजोर समाज, न्यायपालिका और
विधायिका
बलात्कार से सम्बंधित कानून को सख्त करने की मांग जोरों पर
है। मांग की जा रही है कि बलात्कारियों को फांसी दी जाये। पर क्या वास्तव में बलात्कारियों को फांसी देकर और इससे सम्बंधित कानून को
मजबूत करके हम बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओ को रोक सकते है ? जबकि
बलात्कार जैसी विकृत मानसिकता आदमी के शैतानी दिमाग की उपज होती हैं जिसे वो कब और कहाँ और कैसे पूरा करेगा ये किसी को पता नहीं होता। ऐसी
स्थिति में क्या सिर्फ सख्त से सख्त कानून बलात्कार की घटनाओ को रोक पायेगा। यह
विचार करने योग्य प्रश्न है?
हालाँकि यह सही है कि कानून की कमजोरी के चलते इस तरह की घटनाये बढ़ी हैं पर सिर्फ
कमजोर कानून की कसौटी पर हम बलात्कार जैसी घटनाओ को जस्टिफाई नहीं कर सकते
क्योकि अगर सिर्फ सख्त कानून ही अपराध की पुनरावृति पर रोक लगाता है तो फिर हत्या, लूट और डकैती जैसी
घटनाओ की पुनरावृत्ति क्यों होती है . इन अपराधो की सजा तो
मौत और आजीवन कारावास है। फिर भी ये घटनाये आये दिन होती रहती है। यानि ये घटनाये स्पष्ट करती है कि सिर्फ
सख्त कानून ही अपराध की पुनरावृत्ति पर रोक नहीं लगा सकता । ऐसे में ये मानना कि
कानून को सख्त कर देने से बलात्कार जैसी घटनाये रुक जायेंगी, समझ से परये है ।
हाँ इतना जरुर हो सकता है कि अंशकालिक तौर पर ये घटनाये कम हो जाये पर इसके
दीर्घकालिक परिणाम काफी घातक होंगे क्योकि ये मानी हुई बात है की इस देश में किसी
भी कानून का सदुपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा होता हैं । जिसके तीन कारण है हमारी
कमजोर न्यायपालिका, विधायिका और हमारा समाज ।
न्यायपालिका इसलिए कमजोर है क्योकि वो साक्ष्यों के आधार पर अपना फैसला देती है
और साक्ष्य बनाये भी जाते हैं और बिगाड़े भी जाते हैं । ऐसे में पुलिस द्वारा
अपराध के संदर्भ में पेश किया गया साक्ष्य कितना सही है और कितना गलत इसको तय करने का कोई भी पैमाना
हमारी सम्मानित न्यापालिका के पास नहीं है । सिवाये इसके कि वो शक होने की
दशा में दोबारा जांच के आदेश करें या उन्ही सबूतों के आधार पर अपना फैसला सुनाये । विधायिका इसलिए कमजोर है क्योकि आज की पूरी
राजनैतिक व्यवस्था व्यक्तिगत हो गयी हैं । आज संसद में वही मुद्दे विचार के लिए रखे जाते
है जिससे सत्ता पक्ष या विपक्ष को फ़ायदा हो । आम आदमी की बुनियादी अवाश्य्कताओ से
न सत्ता पक्ष कोई सरोकार हैं और न विपक्ष का आज दिल्ली बलात्कार कांड को लेकर विपक्ष जो भी आवाज़ उठा
रहा है उसका उद्देश्य मात्र जनता की अंशकालीन आक्रोश का राजनैतिक फ़ायदा उठाते हुए
सत्तापक्ष को बदनाम करना है क्योकि ऐसा हो नहीं सकता की आज जो विपक्ष उनके सत्ता
में रहते हुए पूर्व के वर्षो में कोई बलात्कार घटना न हुई हो । ऐसे बड़ा सवाल ये है कि जब उनके
शासनकाल में बलात्कार की घटनाये हुई तो उन्होंने बलात्कार पर क्यों नहीं कोई सख्त
कानून बनाया । बात साफ़ है की आज विधायिका में बैठे हुए लोगो का आम आदमी से कोई
लेना देना नहीं है, लेना देना है तो केवल उन मुद्दों से जिनसे व्यक्तिगत फ़ायदा मिलता हो । अब
बात करते है दिल्ली बलात्कार कांड के उस कारण की जिसने इस पूरी घटना के घटित होने
में एक अदृश्यमान भूमिका निभाई यानि हमारा बहरा समाज ।
एक न्यूज चैनल से बात चीत में इस कांड के पीडिता के दोस्त ने जो कुछ बताया
उसने यह सिद्ध कर दिया कि हमारा समाज आज भी मै, मेरा परिवार
और मेरे लोगो की मानसिकता
से ग्रसित है । आज हर एक आदमी को दूसरे आदमी से कोई मतलब नहीं है । दूसरा क्या कर
रहा है, किस मुसीबत में है इससे उसको कुछ भी लेना देना
नहीं है । हाँ जब बात मोमबत्ती वाला मोर्चा निकालने की और हमें न्याय
दो का नारा लगाने की आती है तो यही आम आदमी सबसे पहले निकलता है बिना ये सोचे
कि कल जो घटना घटी,
और जिसके लिए आज हम ये मोर्चा निकाल रहे, वो मेरे सामने ही
घटी थी और उसके घटित होने का सबसे बड़ा जिम्मेदार मैं हूँ ।
बात साफ़ है कि किसी भी घटना के घटित होने और उसके बढ़ने में उपरोक्त यही तीन कारण
जिम्मेदार हैं । इसलिए अगर हमें बलात्कार जैसी किसी भी अमानवीय घटना को रोकना है
तो हमें सबसे पहले इन तीनो जगहों पर सुधार की बात करनी
चाहिए । जब इनमे सुधार होगा तो बिना कोई सख्त कानून बनाये हम मौजूदा कानून और उस
कानून के मुताबिक दी जाने वाली सजा के दम पर ही अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दे सकेंगे और बनाये जाने
वाला कोई भी सख्त कानून एक कठपुतली की तरह होगा जिसका हर स्तर पर ज्यादा से ज्यादा दुरुपयोग किया
जायेगा । जैसा की आज जन सुरक्षा के लिए बने तमाम कानून में देखने को मिल रहा है ।
न्यायपालिका मे सुधार
बलात्कार
से सम्बंधित कानून को सख्त करने की मांग जोरों पर है। मांग की जा रही है कि
बलात्कारियों को फांसी दी जाये। पर क्या वास्तव में बलात्कारियों को
फांसी देकर और इससे सम्बंधित कानून को मजबूत करके हम बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओ
को रोक सकते है ? जबकि बलात्कार जैसी विकृत मानसिकता आदमी के शैतानी दिमाग की
उपज होती हैं जिसे वो कब और कहाँ और कैसे
पूरा करेगा ये किसी को पता नहीं होता। ऐसी स्थिति में क्या सिर्फ सख्त से
सख्त कानून बलात्कार की घटनाओ को रोक पायेगा। यह विचार करने योग्य प्रश्न है?
हालाँकि
यह सही है कि कानून की कमजोरी के चलते इस तरह की घटनाये बढ़ी हैं पर सिर्फ
कमजोर कानून की
कसौटी पर हम बलात्कार जैसी घटनाओ को जस्टिफाई नहीं कर सकते क्योकि अगर सिर्फ सख्त
कानून ही अपराध की पुनरावृति पर रोक लगाता है तो फिर हत्या, लूट और डकैती
जैसी घटनाओ की पुनरावृत्ति क्यों होती है . इन
अपराधो की सजा तो मौत और आजीवन कारावास है। फिर भी ये घटनाये
आये दिन होती रहती है। यानि ये घटनाये स्पष्ट करती है कि
सिर्फ सख्त कानून ही अपराध की पुनरावृत्ति पर रोक नहीं लगा सकता ।
ऐसे में ये मानना
कि कानून को सख्त कर देने से बलात्कार जैसी घटनाये रुक जायेंगी, समझ से
परये है । हाँ इतना जरुर हो सकता है कि अंशकालिक तौर पर ये घटनाये कम हो जाये पर
इसके दीर्घकालिक परिणाम काफी घातक होंगे क्योकि ये मानी हुई बात है की इस देश में
किसी भी कानून का सदुपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा होता हैं । जिसके तीन कारण है हमारी
कमजोर न्यायपालिका, विधायिका और हमारा समाज ।
न्यायपालिका
इसलिए कमजोर है क्योकि वो साक्ष्यों के आधार पर अपना फैसला
देती है और साक्ष्य बनाये भी जाते हैं और
बिगाड़े भी जाते हैं । ऐसे में पुलिस द्वारा अपराध के संदर्भ में पेश किया
गया साक्ष्य कितना सही है और कितना गलत इसको तय करने का कोई भी पैमाना
हमारी सम्मानित न्यापालिका के पास नहीं है । सिवाये इसके कि वो शक होने
की दशा में दोबारा जांच के आदेश करें या उन्ही सबूतों के आधार पर अपना
फैसला सुनाये । विधायिका इसलिए कमजोर है क्योकि आज की
पूरी राजनैतिक व्यवस्था व्यक्तिगत हो गयी हैं । आज संसद में वही मुद्दे विचार के लिए रखे जाते
है जिससे सत्ता पक्ष या विपक्ष को फ़ायदा हो । आम आदमी की बुनियादी
अवाश्य्कताओ से न सत्ता पक्ष कोई सरोकार हैं और न
विपक्ष का आज दिल्ली बलात्कार कांड को लेकर विपक्ष जो भी आवाज़ उठा रहा है उसका
उद्देश्य मात्र जनता की अंशकालीन आक्रोश का राजनैतिक फ़ायदा उठाते हुए सत्तापक्ष
को बदनाम करना है क्योकि ऐसा हो नहीं सकता की आज जो विपक्ष उनके सत्ता में रहते
हुए पूर्व के वर्षो में कोई बलात्कार घटना न हुई हो । ऐसे बड़ा सवाल ये है कि जब उनके
शासनकाल में
बलात्कार की घटनाये हुई तो उन्होंने बलात्कार पर क्यों नहीं कोई सख्त कानून बनाया
। बात साफ़ है की आज विधायिका में बैठे हुए लोगो का आम आदमी से कोई लेना देना नहीं
है, लेना
देना है तो केवल उन मुद्दों से जिनसे व्यक्तिगत फ़ायदा मिलता हो । अब बात करते है
दिल्ली बलात्कार कांड के उस कारण की जिसने इस पूरी घटना के घटित होने में एक
अदृश्यमान भूमिका निभाई यानि हमारा बहरा समाज ।
एक न्यूज
चैनल से बात चीत में इस कांड के पीडिता के दोस्त ने जो कुछ बताया उसने यह सिद्ध कर
दिया कि हमारा समाज आज भी मै, मेरा
परिवार और मेरे लोगो की मानसिकता से ग्रसित है । आज हर एक
आदमी को दूसरे आदमी से कोई मतलब नहीं है । दूसरा क्या कर रहा है, किस
मुसीबत में है इससे उसको कुछ भी लेना देना नहीं है । हाँ जब बात मोमबत्ती
वाला मोर्चा निकालने की और हमें
न्याय दो का नारा
लगाने की आती है तो यही आम आदमी सबसे पहले निकलता है बिना ये सोचे कि कल जो
घटना घटी,
और जिसके
लिए आज हम ये मोर्चा निकाल रहे, वो मेरे सामने ही घटी थी और उसके घटित
होने का सबसे बड़ा जिम्मेदार मैं हूँ ।
बात साफ़
है कि किसी भी घटना के घटित होने और उसके बढ़ने में उपरोक्त यही तीन कारण
जिम्मेदार हैं । इसलिए अगर हमें बलात्कार जैसी किसी भी अमानवीय घटना को रोकना है
तो हमें सबसे
पहले इन तीनो जगहों पर सुधार की बात करनी चाहिए । जब इनमे सुधार
होगा तो बिना कोई सख्त कानून बनाये हम मौजूदा कानून और
उस कानून के मुताबिक दी जाने वाली सजा के
दम पर ही अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दे सकेंगे और
बनाये जाने वाला कोई भी सख्त कानून एक कठपुतली की तरह होगा जिसका हर स्तर पर ज्यादा
से ज्यादा दुरुपयोग किया जायेगा । जैसा की आज जन सुरक्षा के लिए बने तमाम कानून में देखने को मिल रहा है
जल्द सुनवाई के लिए जजों के सुझाव
दिल्ली गैंगरेप मामले में दोषियो को जल्द
से जल्द उनके अंजाम तक पाहुचने के लिए उठ रही मांग के बीच दो महिला जजों ने ऐसे-ऐसे मामले में तेज ट्रायल के लिए कुछ
उपाय सुझाए है।
एविडेन्स एक्ट में हो बदलाव - सुप्रीम कोर्ट की जज ज्ञान सुधा मिश्रा ने ऐसे मामलों में कई स्तर पर
बयान दर्ज करने की प्रक्रिया छोटी करने के लिए एविडेन्स एक्ट (साक्ष्य कानूनों) में संशोधन करने का सुझाव दिया है। जस्टिस मिश्रा के मुताबिक, महिलाओ के
साथ ऐसे जघन्य अपराधों के मामले पुलिस के जुटाए सबूतों पर निर्भर करते है। पुलिस
अगर आरोपी और पीड़ित पक्ष का बयान एक जुडिशल ऑफिसर के सामने लेती है तो दूसरी बार
फिर से कोर्ट में बयान दर्ज करने की जरूरत क्यों है? कोर्ट में दूसरी बार बयान दर्ज करने की वर्तमान
प्रक्रिया से गवाहों को प्रचलित करने, उनके मुकरने और बहुत सारे मामलों में
प्रमुख गवाहों की हत्या तक को बढ़ावा मिलता है।
आरोपियों को जल्द मिले वकील - दिल्ली गैंगरेप केस की जांच कर रहे आयोग की अध्यक्ष जस्टिस उषा मेहरा के
मुताबिक बहुत सारे मामले में वकीलों को आरोपियों का केस लड़ने से इंकार कर
दिया। वकीलों को आरोपियो का केस लेने के
लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हालाकि, ट्रायल जज को अधिकार है कि वह आरोपिओ को
शुरू से ही कानूनी सहायता मुहैया कराए या ताकि मामले में तेज सुनवाई हो।
कॉंग्रेस भी कड़े कानूनों के फ़ेवर में - यौन आपराधों पर शिकंजा
कसने के लिए कॉंग्रेस ने कड़े कानून पेश करने का फैसला किया है। कॉंग्रेस रेप
मुजरिमों को 30 साल तक तक की कैद,
3 महीने के
अंदर फैसला करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और रेप में दोषियों का
केमिकल कैस्ट्रेशन (रसायनिक तरीके से नपुंसक बनाना) जैसे कानूनों पर विचार कर रही है। कॉंग्रेस इस प्रस्ताव से पूरा फाइनल बिल
रेप कानूनों में संशोधन के
लिए बनी जे.एस. वर्मा की कमिटी के सामने रखा ।
जांच के लिए बेहतर सिस्टम - अमेरिका के हयूमन राइट्स ने सुझाव दिया है कि भारत में रेप से जुड़े
मामलों में पीड़ितो कि सम्मानिक ढंग से जांच और इलाज के लिए स्टैंडर्ड प्रोसिजर बने
और उसे लागू किया जाए। संगठन ने रेप मामलों में “ फिंगर टेस्ट ” को खत्म करने कि पैरवी भी की है।
गृहमन्त्रालय के आकड़े 2012 में
Ø
635 रेप के मामले दर्ज हुए लेकिन सिर्फ सजा
एक आरोपी को ही मिला।
Ø पिछले 5 साल में 754 आरोपियों को अरेस्ट किया गया।
Ø 403 लोगो के खिलाफ चल रहा है ट्रायल ।
Ø 348 आरोंपियों के खिलाफ जाँच अब भी पेंडिग
है।
जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट
क्या है वो तीन फ़ैक्टर
जस्टिस वर्मा ने क्यों नहीं की फांसी की
सिफ़ारिश - सेक्सुअल ओफ़िंस से निपटने के
लिए जस्टिस जे.एस. वर्मा की अगुवाई में बनी कमिटी ने कई सिफ़ारिश की गयी है। जस्टिक वर्मा
कमिटी ने कहा कि गैंग रेप मामले में फांसी नहीं दी जा सकती। रिपोर्ट में कहा गया
कि दुनिया के 150 देशों में फांसी की सजा का प्रावधान ही
नहीं है।
अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने भी रेप में देथ पेनल्टी को खत्म कर दिया था। साथ ही
कहा गया कि हाल के सालो में मर्डर के लिए ज़्यादातर उम्र कैद ही दी जा रही हैं।
बावजूद इसके मर्डर की घटना में कमी आई है। इन तर्को के साथ कमिटी ने गैंग रेप में
फांसी की सजा न दिए जाने की सिफारिश की ।
रेप केसो को अलग से देखने
की जरूरत - जस्टिस वर्मा कमिटी ने कहा है की
सीआरपीसी के प्रावधान में देथ पेनल्टी का कारण बताना होता है और रेयरेस्ट ऑफ रेयर
केस में फांसी दी जाती है। फांसी की सजा तब दी जाती है जब हत्या बर्बर और जघन्य
तरीके से किया गया हो। सेक्सुअल असाल्ट से सबन्धित केस खासकर गैंग रेप का ऐसा
मामला जिसे बर्बर तरीके से अंजाम दिया गया हो और पीडिता गंभीर हालत में पंहुच जाए
तो ऐसे मामले में सजा भी गंभीर होना चाहिए।
हत्या की स्थिती में मर्डर का अलग केस
चाहता है। अगर हत्या का मामला बन सकता है। गैंग रेप के कारण पीड़िता की स्थिती बदतर
हो जाए तो ऐसे मामले की अलग से देखने की जरूरत है। रेप के कारण बाद में जख्मी को
मौत होने या उसके कोमा आदि में जाने की स्थिती में अलग प्रावधान किए जाने की जरूरत
है। इसी लिए धारा -376 (3) बनाने की
सिफ़ासिश की गयी है। गौरतलब है की इसके लिए 20 से उम्र कैद (मरते दम तक जेल) तक सजा का प्रावधान करने की बात कही गयी है। महिलाओ के प्रति हिंसा से
जुड़े कानूनों को सख्त बनाने के लिए सुझाव देने को बनी। जस्टिस वर्मा कमिटी ने 630 पेजों की रिपोर्ट में कमिटी ने रेप और मर्डर के मामले में कठोरतम सजा का सुझाव देने से बची।
कमिटी का विचार यह भी है कि जुवेनाइल कि वर्तमान आयुसीमा 18 साल से कम नहीं किया जाए। गौरतलब है कि दिल्ली गैंग रेप कांड में सबसे
भयानक कहे जा रहे अरोपी के जुनेवाइल होने के बाद उम्र सीमा को घटाकर 16 साल करने कि काफी मांगे उठ रही थी।
कमिटी ने बलात्कारियों को कड़ी सजा
दिलवाने के लिए कानूनों में बदलाव करने कि सिफारिश कि है। पीड़िता को मारणासन्न
हालत में छोड़कर भागने वाले आरोपियों के खिलाफ और कड़े कानूनों का सुझाव दिया गया
है। महिलाओ से होने वाले अपराधों में कुछ नई कैटिगरीज़ को शामिल किया गया है। इनके
आलवा रेप और गैंग रेप में मामलों को नए सिरे से डिफ़ाइन किया गया है।
जस्टिस वर्मा ने कहा कि उन्होने
बलात्कारियों के लिए मौत कि सजा का प्रस्ताव इसलिए नहीं दिया क्योकि बहुत सारे
महिला संगठनों ने अपने सुझावों मे इसका विरोध किया था।
बड़ी सिफारिशे
Ø रेप “रेयर आफ रेयरेस्ट” नहीं, इसलिए फांसी नहीं दी जा सकती।
Ø रेप और गैंग रेप के मामले नये सिरे से
डिफ़ाइन किया।
Ø गैंग रेप में 20 से लेकर मरतेदम तक की सजा।
Ø रेप में 7 साल से लेकर उम्र कैद तक का प्रावधान।
Ø एंटी स्टाकिग लॉं में एक साल से लेकर 3 साल तक कैद।
Ø जांच की लापरवाही बरतने पर अफसर को 5 साल की सजा।
Ø एसिड अटैक में 10 साल से लेकर उम्र कैद तक।
Ø सेक्सुअल नेचर के टच में 5 साल तक कैद।
Ø ह्यूमन ट्रैकिंग में 7 साल से लेकर 10 साल तक की सजा।
Ø जुवेलाइन की उम्र 18 से कम नहीं की जानी चाहिय।
Ø छोटी उम्र, जुर्म बड़े....... ।
Ø जुवेलाइन, खौफ़ नाक चेहरा ......।
लापरवाह पुलिस / बलात्कार
दिल्ली पुलिस कि लापरवाही के वजह से एक
बार फिर दिल्ली को एक शर्मनाक हादसे से गुजरना पड़ा है। दिल्ली पुलिस के कई
अधिकारियो का मानना है कि वसंत विहार थाने क्षेत्र मे हुई समूहिक बलात्कार कि
वारदात को टाला जा सकता था, अगर अरोपियों कि ओर से किए हुए बढ़ई कि
लूट पर पुलिस तत्परता दिखाती तो शायद इस घटना को रोका जा सकता था। हौजखास के उन दो
पुलिस कर्मियों से जिन्होंने बढई कि लूट कि बात को हल्के मे लिया था।
वसंत विहार मे समूहिक बलात्कार से पहले
बदमाशों ने संगम विहार निवासी रामधार को लूटा। बदमाश उसका मोबाईल फोन नकदी लूट कर
उसे आईआईटी फ्लाईओवर के पास फेक गए। बस सवर नशे मे धुत सभी दोबारा उसी रास्ते से
होकर मुनरिका पाहुचे और छात्रा और उसके दोस्त को लिफ्ट दिया,
जिसके बाद आरोपियों ने सामूहिक बलात्कार कि वारदात को अंजाम दिया। वारदात के बाद
रामधार ने तत्काल मौके से गुजर रहे मोटर साईकिल सवार दो पुलिस कर्मियों से सारी
बात बताई थी। रामधार ने एक बदमाश का नाम राम सिंह बताया था,
लेकिन दोनों पुलिस वालों ने यह कह कर कार्यवाही से मना कर दिया कि जिस जगह उसे
लिफ्ट दिया गया था, वह इलाका वसंत विहार थाना के आधीन आता
है।
आला अधिकारियों कि टीम अब उन दो पुलिस कर्मियों
की पहचान करेगी, जिन्होंने पुलिस आयुक्त का फरमान न मानने की गुस्ताख़ी की है।
वही वसंत विहार इलाके मे तैनात सभी पीसीआर वाहन, पेट्रोलिंग मोटर साईकिल, सब
इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर लेवल के अधिकारियों की कॉल डिटेल्स निकली जा रही है।
ताकि जांच टीम को यह पता चल सके की जब इस घटना को अंजाम दिया जा रहा था तब इन सभी
पुलिस अधिकारियों का लोकेशन क्या था। ? ये लोग किस जगह पर मौजूद थे। यही नहीं
इससे पहले भी पुलिस कई सारे केस मे नाकाम रह चुकी है। पिछले कुछ सालो मे करीब दस
कभी बस मे तो कभी कार में राजधानी आसहाय होकर चंद बदमाशों की ओर से औरत की अस्मत
लूटी जाने की बर्बर घटना देख चुकी है। हर बार की तरह इस बार भी घटना के बाद आला
अधिकारियो ने जहा सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने की बात कही है वही भीड़ का रोना रोकर हरेक
वाहनो की चेकिंग में असमर्थता जताते हुए यह साफ कर दिया है कि पुलिस के पास अभी भी
कोई ठोस रणनीति नहीं है। आकड़ों पर नज़र डाले तो साफ हो जाता है कि राजधानी कि कानून-व्यवस्था मे खामी हर साल उजागर होती है,
लेकिन पुलिस सिवाय अस्वासन के बजाय पुलिस कोई ठोस कदम अब तक दुष्कर्म और बलात्कार
के 453 मामले सामने आ चुके है।
2001 मे पहली बार राजधानी में चलती ब्लू लाइन
बस में एक युवती से चार लोगो ने सामूहिक बलात्कार कि वारदात को अंजाम दिया था।
चलती बस में सामूहिक
बलात्कार कि यह पहली घटना थी, जिसने सड़क से संसद तक महिलाओ कि सुरक्षा
को लेकर ठोस नियम बनाने पर इतना ज़ोर दिया।
मथुरा रोड, साऊथ दिल्ली से बस मे चढ़ी युवती के साथ
बलात्कार के बाद आरोपीयो ने उसे बस से बाहर धक्का दे दिया। 2003 में सिरीफ़ोर्ट औडिटोरियम के बाहर से एक 35 वर्षीय महिला फिल्मकार को कार सवार दो
युवको ने अगवा किया और बेखौफ होकर राजधानी की सड़को पर चलती कार मे उसे हवस का सीकर
बना कर पंचशील रोड पर फैक कार फरार हो गए। धौला कूआ पर 2005 में दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा को कार सवार बदमाशों ने उस समय अगवा कार लिया जब वह अपने
दोस्तो के साथ खाने का सामान खरीद कर घर की तरफ पैदल जा रही थी। कार सवार चार
आरोपियों ने छात्रा को हवस का शिकार बना लिया। 2006 में जनकपुरी से घर जा रही में 12वी की छात्रा को कार सवार युवकों ने अगवा
कर लिया। और सामूहिक दुष्कर्म को अंजाम दिया। 2010 में मंगोलपुरी में काम करने वाली युवती को कार सवार बदमाशों ने बलात्कार
किया। यही नहीं इस केस मे एक माइनर ने भी युवती को अगवा करने के बाद चलती कार मे
हवस का शिकार बना लिया। शिकार बना कार तिमारपुर के ईलके में फेक दिया और फ़रार हो
गए। कुछ साल पहले ही धौला
कूआ मे मेवाती गिरोह के चार बदमाशों ने 40 मिनट तक राजधानी की सडको पर चलते वाहन मे हवस का शिकार बनाया। बाहरी
दिल्ली मे युवती को फेक फ़रार हो गए। इस मामले ने राजधानी ही नहीं बल्कि पूरे देश
को हिला कर रख दिया था। बीपीओ मे काम करने वाली युवतियो के लिए कई ठोस कदम उठाए गए। 2011 मे गुड़गाँव से 10वी की छात्रा का अपहरण किया गया और चलती कार मे बलात्कार किया और साऊथ
दिल्ली मे फेक कार फ़रार हो गए। कार मे सवार नशे से धुत तीन युवक कानून की धज्जिया
उड़ाते छात्रा को गुड़गाँव से राजधानी लेकर आये लेकिन रास्ते मे पुलिस ने कार की चेकिंग की जहमत नहीं
उठाई। अप्रैल 2012 मे बलात्कार की ऐसी घटना घटी जिसने
राजधानी को सोचने पर मजबूर कार दिया। क्या वाकई मे राजधानी मे मानवता खतम हो रही
है। पीतमपुरा मे एक युवती अपने दोस्तो के साथ बाज़ार जा रही थी अचानक कार सवार
मनचले लड़को ने कार ओवरटेक
करके रोका और बंदूक की नोक पर लड़की को अगवा कर बलात्कार को अंजाम दिया। एक दूसरी
वारदात मे जल बोर्ड कॉल सेंटर मे काम करने वाली 21 साल की युवती को कार सवार आठ लोगो ने हवस का शिकार बना लिया। युवती इसमे
से एक युवक को जानती थी। अगस्त मे घाटी इस घटना मे युवती को पश्चिमी दिल्ली से अगवा कर फ़रीदाबाद मे फेक
दिया था। इस साल नवम्बर मे विदेशी युवती के साथ तीमारपुर मे पाँच आरोपियों ने चलती कार मे युवती से बलात्कार किया। बदमाशों
ने इस सनसनी खेज वारदात मे विदेशी युवती का मोबाइल नकदी लूट लिया था।
मेडिकल छात्रा के साथ हुये सामूहिक
बलात्कार की घटना पर स्तम्भ संग्यान लेते हुये दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस से
रिपोर्ट देने को कहा था। अदालत ने पुलिस से घटना वाले दिन उस ईलाके मे गस्त लगा
रहे अधिकारियों की जानकारी मांगी थी। इस रिपोर्ट की अस्पस्टता को लेकर अदालत ने
पुलिस को जमकर फटकार लगाई। मुख्य न्यायधीश डी.मुर्गसेन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा “अदालत की ओर से जारी आदेश पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया गया था कि वे उस
क्षेत्र मे गस्त लगा रहे पुलिस अधिकारियों के संबंध में और इस बारे मे कि गयी
कार्यवाही के संबंध मे विस्तृत रपट दे”। उन्होने कहा,“ पुलिस ने एक रपट दी है। हमने रपट का
अध्ययन किया है। लेकिन हम उससे सहमत नही है इसमे किसी भी पुलिस अधिकारी के बारे
में किसी जानकारी का जिक्र नही किया गया है”। रपट से न खुश अदालत ने कहा “हम यह स्पष्ट करते है कि बिना किसी देर के सभी जानकारियों वाली रपट दी जाए”।
मुख्य न्यायधीश डी.मुर्गसेन और न्यायमूर्ति राजीव सहाय कि इस पीठ ने दिल्ली पुलिस की डीसीपी
छाया शर्मा की ओर से दायर स्थिति रपट का अध्ययन करने के बाद ये बाते कही गयी।
सुनवाई शुरू होते ही अदालत ने पूछा कि रविवार रात 40 मिनट तक हुई बलात्कार और मार की घटना के दौरान उस इलाके मे
गस्त ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारियों के संबंध मे रपट इतनी असपष्ट क्यों है?
न्यायमूर्ति मुर्गसेन ने कहा है कि यह असपष्ट रपट है आपने ड्यूटि पर मौजूद पुलिस
अधिकारी के संबंध मे कोई जानकारी नहीं दी हम आदेश मे लिखेंगे कि विस्तृत रपट नहीं
दायर कि गयी है। दिल्ली पुलिस के वकील नाज़मी वज़ीरी ने पीठ को शांत करते हुये कहा
मैं मानती हू कि अदालत मे समझ और विस्तृत जानकारी पेश होनी चाहिए थी पूरी नौकरशाही
इन मामलो मे लगी हुई है। हमारा प्राथमिक मामलो कि जांच करना है।“ उन्होने अदालत से कहा है कि विस्तृत रपट दायर कि जाएगी। ” दिल्ली सरकार को केंद्रीय फोरेंसिक साइंस
प्रयोगशाला मे ढ़ाचा गत सुबिधाओ और अन्य चीजों कि कमी को देखने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा “हमे सूचित किया गया है कि (CFSC)
ने निदेशक
नहीं है”। वहा सिर्फ दो सहायक निदेशक है, जो सक्षम
नहीं है। इस वजह से जांच मे एक दो साल तक कि देरी हो सकती है। उन्होने कहा सबूत खो
जाते है। वे नमूने स्वीकार नहीं करते क्योंकि वहा रासायनों कि कमी है।
न्यायपालिका में सुधार की सुगबुगाहट
बीते
साल में ही न्यायपालिका में सुधार की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। उम्मीद है कि नए
साल में भी यह परवान चढ़ेगा। जेल से वीडियो कांफ्रेसिंग की सुविधा बहाल होना, इस दिशा में एक मजबूत कड़ी मानी जाती है। वहीं न्याय कक्ष को
कंप्यूटरीकृत किया जा रहा है। कंप्यूटर की खेप न्यायालय में पहुंचने भी लगी है।
यद्यपि न्यायिक पदाधिकारियों की कमी जरूर खल रही है। इसे न्याय मिलने में विलंब का
एक खास कारण माना जा सकता है। पूर्णिया जिले में करीब नौ अपर जिला जज के पद सृजित
हैं किंतु वर्तमान में एकमात्र अपर जिला जज कार्यरत हैं। वहीं, अवर न्यायाधीशों में पांच के मुकाबले एक कार्यरत हैं। यही
हाल न्यायिक दंडाधिकारियों की है। बहरहाल न्यायालय अपने सीमित संसाधनों के बूते भी
अपनी कार्य पद्धति बरकरार रखे हुए हैं।
बड़ी
संख्या में हुई सुनवाई, मिली सजा
2008 ई. में कुल 122 केसों में विभिन्न मामलों
में 259 व्यक्तियों को सजा सुनाई गई। 2009 में 109 केस में ही सजा हुई जिसमें 248 व्यक्ति सजा पाए। उसी तरह 2010 में
170 केस में 385 व्यक्ति को सजा हुई। 2011 में 118 केस में 386 व्यक्ति को सजा तथा 2012
में 175 केसों में 283
व्यक्ति को सजा हुई।
पूर्णिया
से भी भोपाल पहुंचे थे अधिवक्ता भोपाल स्थित राष्ट्रीय न्यायपालिका अकादमी ने गत
मार्च में बैठक आयोजित की गई। जिसमें पूर्णिया के अधिवक्ता मनोज पाठक व बबीता
चौधरी ने हिस्सा लिया था। बैठक का मुख्य विषय था न्याय मिलने में देरी नहीं हो, इस ओर क्या प्रयास किया जाए। न्यायपालिका के कार्य में और
सुधार की क्या गुंजाइश हैं। बैठक में देश के विभिन्न भागों के न्यायाधीशों के
अलावा अधिवक्ता, स्वयंसेवी संस्थाओं के
प्रतिनिधि तथा पुलिस पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। जिसमें यह बात मुख्य रूप से
उभरी कि पक्षकारों के द्वारा वाद के दौरान ज्यादा टाइम पीटिशन पर रोक हो। तारीख
लंबी नहीं दी जाए। कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच तारतम्य हो। इसके लिए
प्रत्येक व्यवहार न्यायालय में एक पीआरओ का पद सृजित करने की बात उठी। इन
अधिवक्ताओं ने बताया कि न्यायिक पदाधिकारियों की कमी को दूर कर संसाधन बढ़ायी जाए
तो आने वाले दिनों में न्याय व्यवस्था बेहतर सिद्ध होगी। पूर्णिया में जिला एवं
सत्र न्यायाधीश संजय कुमार के तत्वावधान में मध्यस्थता केंद्र बनाया जा रहा है।
हालांकि वादों में समझौता हेतु मध्यस्थता केंद्रों के द्वारा भी वादों को सुलझाने
हेतु प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
हमारे सभ्य समाज में जीने के अधिकार से क्रूरता पूर्वक
वंचित कर दी गई दामिनी जो अपने प्राण गवांकर पुरे राष्ट्र को संज्ञा, प्रज्ञा
और विग्या का एक नया अध्याय पढ़ा गई उसके अंतिम संस्कार के विषय में हमारे समाज को
विचार करना ही होगा। आज जब पूरा राष्ट्र
दामिनी की स्मृतियों के साथ दुखी, संतप्त होनें के साथ साथ अपनी बेटियों के लिए चिंतित और
परेशान भी है तब एक बात निःसंदेह कही जा सकती है कि दामिनी हमारें सुप्त और उदासीन
समाज के लिए एक नायिका बन गई है। दामिनी ने जिस प्रकार
की पाशविक और दिल दहला देनें वाली यंत्रणा झेली और उसके बाद तेरह दिनों तक असीम
जिजीविषा के साथ मृत्यु से अनथक किन्तु असफल संघर्ष किया वह भारतीय समाज के लिए एक
चिरस्थायी कथा बन गई है।
प्रश्न यह नहीं है है कि दामिनी के नाम पर हम कानून बना
पायें या नहीं बल्कि प्रश्न यह है कि हम मध्यमवर्गियों की नायिका को क्या हमारा
समाज, शासन
और सरकार चैन की मृत्यु भी दे पायी?
बिना गुरेज उत्तर देना होगा कि हम दामिनी को मृत्यु के बाद
एक गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार नहीं दे पाए। यह शर्म, खेद, अफ़सोस, दुःख
और डूब मरने वाला विषय है कि जिस दामिनी की के साथ हुए बलात्कार के लिए हम दुखी
हैं, जिस
दामिनी के इलाज में चले घटनाक्रम से हम पछता रहे हैं, जिस
दामिनी की मृत्यु के बाद हम संतप्त हैं,
जिस दामिनी के अपराधियों के लिए हम सख्त सजा मांग रहे हैं, जिस
दामिनी के साथ हुए बलात्कार ने हमारें समाज को आत्मपरीक्षण के लियी मजबूर कर दिया
है उसी दामिनी के मृत्यु संस्कार को न तो हम देख समझ पाए और न ही उसमें सम्मिलित
हो पाए!! बड़ी शर्म के साथ कहना पड़ रहा है कि आज का नेता वर्ग जो कि
राजनीति में अपनें वंश की स्थापना कर जाता है और उसके वंशवादी उत्तराधिकारी अपनी
राजनीति को पकानें और समाज की हमदर्दी सुहानुभूति अर्जित करनें के लिए अपने परिवार
के किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर हस्पताल के डाक्टरों के साथ मिल कर मृत्यु
की घोषणा शनिवार रविवार देख कर कराता है!
वह ऐसे समस्त प्रयत्न
करता है कि अंतिम यात्रा में लोग बड़ी से बड़ी संख्या सम्मिलित हो!! नेता का परिवार अंतिम
यात्रा में भीड़ बढानें के लिए
अपनें क्षेत्र में अपनें समर्थकों के सहारें से आस पास के गावों और शहरों में आनें
जानें के लिए बसें और ट्रकें भी उपलब्ध करा देते है!!!
नेताओं के परिवार
मृत्यु के सहारें भी राजनीति करनें का कोई अवसर नहीं चुकते हैं!!!!
प्रश्न यह है कि अपनी मृत्यु को भी अवसर और मौके में बदल
देने वाला नेता समाज हम मध्यम वर्गियों की भावनाओं को क्यों अनदेखा कर गया? क्यों
नेता समाज और प्रशासन ने दामिनी की संघर्ष पूर्ण मृत्यु की दुखद गाथा के अंतिम
अध्याय से देशवासियों को वंचित कर दिया??
आखिर शासन, प्रशासन और नेताओं को किस बात का डर भय था? आखिर
क्या ऐसी परिस्थितियां थी कि दामिनी जैसी वीरांगना और समाज को झकझोर कर जागृत कर
देनें वाली दामिनी को अपराधियों की भाँती गुमनामी से अंतिम संस्कार का दंड झेलना
पड़ा है?
दामिनी ने जिस प्रकार इस देश की बेटियों को एक स्वर में
बोलना सिखाया और इस समाज को अपनी बेटियों की बात सुनना समझना सिखाया है उससे तो
देश का दायित्व बन गया था कि वह अपनी इस बेटी को लाखों करोड़ों की संख्या में
श्मशान पहुंचकर विदा करता किन्तु दिल्ली ने देश के नागरिकों को उनकें इस नेसर्गिक
अधिकार से भी वंचित कर दिया है। दामिनी के माता पिता
को दबावपूर्वक ले जाकर पौ फटने के पहले ही दामिनी की चिता सजा देना और संस्कारों
के विपरीत सूर्योदय के पूर्व अंतिम संस्कार का दबाव बनाना अघोषित आपातकाल नहीं तो
और क्या है? शासन और प्रशासन ने इस बात को भली भाँति समझना चाहिए था कि
दामिनी के प्रकरण ने हमारें समाज को मातृशक्ति के प्रति हमारें दृष्टिकोण को झकझोर
कर बदलनें का अद्भुत और अविस्मरणीय कार्य कर दिया है। बड़ी लम्बी कालावधि के बाद भारतीय समाज में मातृशक्ति के
प्रति आदर और सम्मान प्रकट करनें की प्रवृत्ति विकसित करनें के प्रति संकल्पशक्ति प्रकट करनें का अवसर भारतीय समाज के सम्मुख
प्रस्तुत हुआ है।
दामिनी के अंतिम संस्कार में यदि पुरे समाज, दिल्ली
और देश को सम्मिलित होने देने का अवसर देने से इस सरकार का क्या बिगड़ जाता? शान्ति
भंग होनें का डर बताकर और क़ानून व्यवस्था बिगड़ने का भय बताकर सरकार ने इस
राष्ट्र के साथ अघोषित आपातकाल लगाने का आचरण किया है!
दिल्ली में बैठे नेता
और अधिकारी भले ही बड़ी भीड़ जुटने और उसके आक्रोशित होनें से आशंकित रहें हो
किन्तु उनका यह पलायन करने वाला आचरण हमें हमारें नागरिक अधिकारों से वंचित कर गया
है यह इस लोकतांत्रिक ढंग से चुनी और घोर
अलोकतांत्रिक आचरण कर रही सरकार और हमारे जागृत होते समाज को स्मृति में रखना
चाहिए। आपातकाल भले ही केवल अन्तिम संस्कार के दौरान कुछ घंटों के
लिए लगा हो पर लगा अवश्य था मेरी ऐसी व्यवस्थित और सुस्पष्ट मान्यता है।