अंतर्राष्ट्रीय खबरों की समीक्षा
अनुक्रमाणिका
·
भूमिका
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अंतर्राष्ट्रीय संबंध
·
अंतर्राष्ट्रीय
सबंध का उद्देयश
·
अंतर्राष्ट्रीय
सबंध के विधि
·
अंतर्राष्ट्रीय
विधि के विषय
·
भारत की विदेश
नीति
·
अंतर्राष्ट्रीयकरण
और मीडिया
·
हिन्दुस्तान
समाचार पत्र : एक नजर
·
नवभारत टाइम्स
: एक नजर
·
पत्रकारिता का
उद्देश्य
·
पत्रकारिता का
दायित्व-
·
समाचार पत्र
में अंतर्राष्ट्रीय समाचार
·
हिन्दूस्तान
समाचार पत्र और नवभारत टाइम्स समाचार पत्र के माह दिसंबर 2013 के अंकों में प्रकाशित
अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का विश्लेषण।
·
निष्कर्ष
·
संदर्भ सूची
भूमिका
अखबार
सार्वजनिक जीवन के साथ ही निजी जीवन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी भूमिका को
नजरअंदाज करना मुश्किल है। दुनिया में मुझ जैसे करोड़ों लोग है जिन्हें सुबह एक
प्याली गर्म चाय के साथ अखबार की तलब होती है। यही आदत है “चाय से ताजगी तभी मिलती
है, जब सुबह-सवेरे का अखबार हाथों में हो”
आज वैश्वीकरण
का दौर चल रहा है जिसमेंमें अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का व्यापक महत्व हो गया है।
राजनीत वर्तमान में जीवन का अंग बन चुका है, एवं अंतर्राष्ट्रीय
राजनीति के प्रभाव से कोई भी वंचित नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय
जगत में घटित होने वाली घटनाओं का प्रत्येक समाज एंव प्रत्येक राष्ट्र पर
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है ।
वास्तव
में अखबार न केवल लोकतंत्र का चौथा खंभा है बल्कि वैश्वीकरण का एक डोर भी है जो
राजनैतिक सम्बन्ध, संस्कृति के आदान प्रदान,
दूर दराज के लोगों के आपसी संबंधों में प्रगाड़ता, और आर्थिक गतिविधि बढ़ाने के लिए वैश्विक व्यापारिक संबंधों को संदर्भित
करता है| इतिहास गवाह है कि जिन देशों में मीडिया स्वतंत्र,
निष्पक्ष और जिम्मेदार रहा है वहां न केवल विकास की रफ्तार बढ़ी है
बल्कि लोगों में जागरूकता का स्तर भी ऊंचा उठा है।
अंतर्राष्ट्रीय
संबंध
विश्व
के विभिन्न देशों के मध्य संबंध अंतर्राष्ट्रीय संबंध कहलाते है। अतीत काल में जब
जनसंख्या नगण्य थी तब न तो विभिन्न राष्ट्रों की परिसीमाऐ थी और न अंतर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों का महत्व। परंतु आधुनिक विश्व में विकास के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय
सम्बन्धों का महत्व बहुत बढ़ गया है। विकास के इन चरणों में मानव आज वायुयान, अस्त्र-शस्त्र, परमाणु और अणु बम था न्यूक्लियर
विस्फोटक सामाग्री भी निर्मित कर चुका है। वह चाँद तक जा चुका है, तथा ग्रहों की खोज लगातार जारी है। मानव विकास कई कई चरण पार कर चुका है,
तथा कई चरणों में जाने को प्रयासरत है। जहां एक ओर मानव निर्मित
समाजों में भाईचारे का स्वभाव पाया जाता है वहीं दूसरी ओर वह ऐसा वातावरण तैयार कर
लेत है जो वैमानस्यता से परिपूर्ण है। सौहार्दपूर्वक रहना जहां मनुष्य का एक
स्वप्न था वहां वैमानस्यता की ओट में वह
साम्राज्य विस्तारवाद का भी समर्थन होता
जा रहा है अतः यह कहा जा सकता है कि विश्व में विभिन्न राष्ट्रों में रह रहे मानव
समाज के बीच अनगिनत सम्बन्ध है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंध कहलाते है।
आज विश्व
संकीर्ण नहीं रह गया है, बल्कि व्यापक रूप ले चुका है।
आज के
युग में अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का व्यापक महत्व हो गया है। राजनीत वर्तमान
में जीवन का अंग बन चुका है, एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के
प्रभाव से कोई भी वंचित नही है।
आज अंतर्राष्ट्रीय
जगत में घटित होने वाली घटनाओं का प्रत्येक समाज एंव प्रत्येक राष्ट्र पर
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है।
वहीं या
दूसरी ओर संस्कृति के आदान प्रदान, दूर दराज के लोगों
के आपसी संबंधों में प्रगाड़ता, और आर्थिक गतिविधि बढ़ाने के
लिए वैश्विक व्यापारिक संबंधों को संदर्भित करता है। यह आम तौर पर वैश्विक
व्यापारिक बाधा को कम करता है जैसे की निर्यात शुल्क में कमी और आयात कोटा की
विभिन्न बाधाओं में कमी तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए माल और सेवाओं के
उत्पादन को बढ़ावा देता है।
अंतर्राष्ट्रीय सबंध का उद्देयश
किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय
संबंध जिसे विदेशी नीति भी कहा जाता है।
अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय
संबंधों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी
गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है। किसी देश की विदेश नीति दूसरे देशों के
साथ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की
जाने वाली नीतियों का एक समुच्चय है।
1. अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना।
2. राष्ट्रों में पारस्परिक मैत्री बढ़ाना।
3. सभी प्रकार की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
4. सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न राष्ट्रों
के कार्यकलापों में सामंजस्य स्थापित करना।
अंतर्राष्ट्रीय सबंध के विधि
1. अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा
बनाए रखना।
2. राष्ट्रों में पारस्परिक मैत्री
बढ़ाना।
3. सभी प्रकार की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा
मानवीय अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल
करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
4. सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के
लिए विभिन्न राष्ट्रों के कार्यकलापों में सामंजस्य स्थापित करना।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय
अंतर्राष्ट्रीयकानून का विस्तार असीम तथा इसके विषय निरंतर
प्रगतिशील है। मानव सभ्यता तथा विज्ञान के विकास के साथ इसका भी विकास उत्तरोत्तर
हुआ और होता रहेगा। इसके विस्तार को सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता। अंतर्राष्ट्रीय
विधि के प्रमुख विषय इस प्रकार है:-
1. राज्यों की मान्यता, उनके मूल अधिकार तथा कर्तव्य।
2. राज्य तथा शासन का उत्तराधिकार।
3. विदेशी राज्यों पर क्षेत्राधिकार तथा राष्ट्रीय सीमाओं के
बाहर किए गए अपराधों के संबंध में क्षेत्राधिकार।
4. महासागर एवं जल प्रांगण की सीमाएँ।
5. राष्ट्रीयता तथा विदेशियों के प्रति व्यवहार।
6. शरणागत अधिकार तथा संधि के नियम।
7. राजकीय एवं वाणिज्य दूतीय समागम तथा उन्मुक्ति के नियम।
8. राज्यों के उत्तरदायित्व संबंधी नियम।
9. विवाचन प्रक्रिया के नियम।
भारत की विदेश नीति
विदेश नीति किसी भी राष्ट्र का वैश्विक मंचों पर एक आधार तय
करती है, अर्थात आपका स्वरुप किस प्रकार का हो, ठीक इसी आधार पर आपकी नीतियां किन उद्देश्यों को ध्यान में
रखकर कार्य कर रही है तय करता है। विदेश नीति अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक पहचान बनाती है।
ठीक इसी अनुरुप विश्व के अन्य देश आपसे विभिन्न प्रकार के राजनयिक, सामरिक, कूटनीतिक, वाणिज्यिक-व्यापारिक संबंध बनाने की पहल करते है।
भारत की विदेश नीति की बुनियाद पंडित नेहरू ने वैश्विक
निरस्त्रीकरण, गुट निरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों पर रखी थी। जो की
निम्न है-
1.
एक दूसरे की
प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
2.
एक दूसरे के
विरुद्ध आक्रामक काररवाई न करना
3.
एक दूसरे के
आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना
4.
समानता और परस्पर
लाभ की नीति का पालन करना।
5.
शांतिपूर्ण सह
अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
भारत विदेश
नीति में देश के विवेकपूर्ण स्व-हित की रक्षा करने पर बल दिया गया है। भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य शांतिपूर्ण स्थिर
बाहरी परिवेश को बढ़ावा देना और उसे बनाए रखना है, जिसमें समग्र
आर्थिक और गरीबी उन्मूलन के घरेलू लक्ष्यों को तेजी से और बाधाओं से मुक्त
माहौल में आगे बढ़ाया जा सकें। सरकार द्वारा सामाजिक- आर्थिक
विकास को उच्च प्राथमिकता दिए जाने को देखते हुए, क्षेत्रीय और
वैश्विक दोनों ही स्तरों पर सहयोगपूर्ण बाहरी वातावरण कायम करने में भारत की महत्वपूर्ण
भूमिका है। इसलिए, भारत अपने चारों ओर शांतिपूर्ण माहौल
बनाने के प्रयास करता है, और अपने विस्तारित पास-पड़ोस में बेहतर
मेल-जोल के लिए काम करता है। साथ
ही भारत की विदेश नीति में इस बात को भली-भांति
समझा गया है, कि जलवायु परिवर्तन ऊर्जा उनके समाधान के लिए वैश्विक
सहयोग अनिवार्य है।
भारत को अपनी आरम्भिक आजादी के दौरान ही अपने दो निकटतम
पड़ोसी चीन एवं पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा। इस दौरान भारत को बहुत कुछ
सीखने को मिला सुरक्षा से लेकर विदेश नीति तक।
लगभग 60 के दशक में वैश्विक परिवेश में असमंजसता की स्थिति
को ध्यान में रखते हुऐ उस समय मार्शल टीटो जैसे विचारकों के साथ मिलकर नेहरु जी के
नेतृत्व में गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई गई। इस नीति के तहत ऐसे राष्ट्र सम्मिलित
हुए जो ना तो साम्यवादी गुट के पक्षधर थे और ना ही पूँजीवादी गुट के समर्थक। ठीक
इसी अनुरुप भारत की विदेश नीति कार्य करने लगी। इंदिरा गाँधी के कार्यकाल से ही
गुटनिरपेक्षता की नीति में थोड़ा सा ही सही बदलाव देखने को मिलने लगा। उस समय कुछ
ऐसी राजनीतिक, राजनयिक घटनाऐं घटी जैसै- 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का
बंगला देश के रुप में एक राष्ट्र का बनना और इस पर उस दौरान विभिन्न देशों से मिले
राजनयिक सहयोग। फिर मध्यपूर्व में विशेषकर इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर भारत का
स्पष्ट दृष्टिकोण। इस मसले पर भारत प्रारम्भ से ही फिलिस्तीन राष्ट्र का समर्थक
रहा है। 1967 में इजराइल द्दारा फिलिस्तीन के विभिन्न ठिकानों जैसे- गाजा पट्टी, येरुशलम, पश्चिमी क्षेत्र आदि पर जबरन कब्जा
करना। भारत ने इस मुद्दे पर इजराइल का खुलकर विरोध किया जो था।
बीते वर्ष में कई रचनात्मक कार्य हुए, कुछ महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल की गई, और भारत की नीति के समक्ष कुछ नयी चुनौतियां भी सामने आयी।
पड़ोसी देशों के साथ भारत की साझा नीति है। वर्ष के दौरान
भूटान में महामहिम के राज्यभिषेक और लोकतंत्र की स्थापना से इस देश के साथ भारत
के संबंधो का और विकास हुआ। भारत ने लोकतांत्रिक राजसत्ता में नेपाल के रूपान्तरण
और बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली का जोरदार समर्थन किया भारत ने अफगानिस्तान के निर्माण और विकास में योगदान किया है पड़ोसी देशों के
साथ मित्रतापूर्ण और घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने के अलावा, भारत ने सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) को एक ऐसे परिणामोन्मुखी संगठन के
रूप में विकसित करने की लिए भी काम किया, जो क्षेत्रीय
एकीकरण को प्रभावकारी ढंग से प्रोत्साहित
किया ।
भारत एक जिम्मेदार देश है जो पड़ोसी देशों सहित दुनिया के
तमाम देशों के साथ शांति, सद्भाव और मेल मिलाप वाले रिश्ते
चाहता है। भारत की इन्हीं खूबियों की वजह से ही वो आज अंतर्राष्ट्रीय मंच में बड़े रोल के लिए तैयार हो
रहा है।
अंतर्राष्ट्रीयकरण और मीडिया
आज ‘भूमंडलीकरण’ का दौर चल रहा है और इस वैश्वीकरण रूपी मानव मेंमीडिया
साँस की काम करता है अर्थात हम कह सकते है
की मीडिया और वैश्वीकरण दोनों एक-दूसरे का पूरक है दोनों मिलकर इंसानी अस्तित्व पर
गहरा असर डाल रहे है।
वैश्वीकरण का शुरुआत तब से माना जाता है जबसे मनुष्य ने
सामाजिक समूहों में जीना शुरू किया। प्राचीन समय में अलग-थलग रहने वाले कबीले
समय-समय पर विचार-विमर्श के लिए इकट्ठा होते थे, एंव नए अवसरों की तलाश में कारोबारी समुदाय दूर-दूर
तक आते-जाते थे इसका सर्वउत्तम उदाहरण है सिंधु सभ्यता एंव मेसोपोटामिया की सभ्यता
के लोग जी अपने व्यापार एंव धार्मिक विश्वासों को फैलाने के लिए धर्मप्रचारक
महाद्वीपों की सीमाएं पार कर थे। जबकि वही
योद्धा कबीलों के लोग नित नई फतह के लिए नए-नए इलाकों में जाते थे । यही से अलग
अलग समुदायों के के बीच परस्पर एकीकरण की प्रक्रियाएं शुरू हुआ फिर स्थानीय से
क्षेत्रीय और क्षेत्रीय से राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया का शुरुआत हुआ। इसी तरह
का एकीकरण आज राष्ट्रीय से वैश्विक दिशा में होता दिखाई देता है।
आज सूचना क्रांति की मदद से पूरी दुनिया को एक गांव में
तब्दील कर दिया वही इंटरनेट ने दुनिया के एक कोने को दूसरे कोने से जोड़ दिया, मानो भौगोलिक दूरी के मायने धुंधले हो गए हो।
आज विश्व ने अरब में क्रांति का अदभुत दौर देखा, अद्भुत इसलिए कि अरब के जिन देशों में कई दशकों से तानाशाही
शासन चल रहा था, वहां लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन ही
नहीं तानाशाहियों को सत्ता से खदेड़ने का काम किया।
जिस अरब में आम लोग सरकार की नीतियों की आलोचना करने से भी
डरते थे, वहां सत्ता विरोधी ज्वार अचानक कैसे आया। इसका उत्तर केवल
यही था, मीडिया के कारण। मिस्र, यमन, लीबिया, सीरिया, सउदी अरब, कुवैत, जैसे पूर्व मध्य एशिया और अरब के देशों ने क्रांति की नई
सुबह को देखा।
अन्तः हम कह सकते हैं कि मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग
बन चुका है। सम्भवतः जीवन का कोई भी हिस्सा आज ऐसा नहीं जिसके विषय में मीडिया मौन
हो।
प्रतीक चिह्न
हिन्दुस्तान समाचार पत्र : एक नजर
प्रकार
|
दैनिक समाचार पत्र
|
प्रारूप
|
व्यापकपर्ण
|
स्थापना वर्ष
|
12 अप्रैल 1936
|
स्थापना वर्ष
|
12 अप्रैल 1936
|
राजनीतिक झुकाव
|
निष्पक्ष
|
भाषा
|
हिन्दी
|
पाठकों की संख्या के आधार पर स्थान
|
भारत में दूसरा सबसे बड़ा समाचार पत्र
|
संस्कारण
|
19
|
स्वामी
|
हिंदुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड
|
प्रकाशक
|
अजय कुमार जैन
|
प्रधानसंपादक
|
शशि शेखर
|
अधिकारी वेबसाइट
|
www.livehindustan.com
|
मुख्यालय
|
कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली - 110001
|
हिन्दुस्तान
अथवा हिन्दुस्तान दैनिक एक प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र है। 'हिन्दुस्तान'
समाचार पत्र का उद्घाटन 1932 में महात्मा
गांधी ने किया था तथा इसका पहला संस्करण 12 अप्रैल, 1936 को दिल्ली से प्रकाशित किया गया था।
1942 का “भारत छोड़ो” आन्दोलन छिड़ने पर सेंसरशिप के विरोध में `हिन्दुस्तान' लगभग 6 माह तक
बन्द रहा। देश के स्वाधीन होने तक `हिन्दुस्तान समाचार पत्र
का मुख्य राष्ट्रीय आन्दोलन को बढ़ावा देना था। उस समय इस समाचार पत्र को महात्मा
गाँधी व काँग्रेस का अनुयायी पत्र माना जाता था।
'हिन्दुस्तान' अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय
और स्थानीय राजनीति, व्यापार, मनोरंजन,
खेल और अन्य सामान्य हितों से संबंधित समाचारों के समस्त विभागों को
प्रकाशित करने के लिए समाचार जगत में प्रसिद्ध है।
'हिन्दुस्तान समाचार पत्र प्रकाशन स्थल- यह समाचार-पत्र उत्तर भारत में प्रकाशित होता है।
दिल्ली बिहार में (पटना,
मुजफ्फरपुर, गया और भागलपुर) झारखंड में (रांची, जमशेदपुर और धनबाद) उत्तर प्रदेश में (लखनऊ,
वाराणसी, मेरठ, आगरा, इलाहाबाद, गोरखपुर, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़ और कानपुर) और उतराखंड में
(देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी)। इसके
अलावा यह मथुरा, सहारनपुर और फ़ैज़ाबाद से व प्रकाशित होता है।
प्रतीक चिह्न
नवभारत
टाइम्स : एक नजर
प्रकार दैनिक
|
समाचारपत्र
|
प्रारूप
|
व्यापकपर्ण
|
स्थापना वर्ष
|
3अप्रैल 1947
|
राजनीतिक झुकाव
|
निष्पक्ष
|
भाषा
|
हिंदी
|
प्रसार
|
दिल्ली मुंबई
|
प्रसार संख्या
|
लगभग 25लाख
|
स्वामित्व
|
बेनेट,कोलमैन एवं
कंपनी लिमिटेड
|
प्रकाशक
|
बेनेट,कोलमैन एवं
कंपनी लिमिटेड
|
संपादक
|
रामकृपाल सिंह
(दिल्ली) एवं सुंदरचंद ठाकुर (मुंबई)
|
अधिकारी वेबसाइट
|
navbharattimes.indiatimes.com
|
मुख्यालय
|
मुंबई
|
नवभारत टाइम्स (एनबीटी) एक दैनिक समाचार पत्र है जो दिल्ली और मुंबई से
प्रकाशित होता है। इसकी प्रकाशक कंपनी बेनेट, कोलमैन कंपनी है, जो 'द टाइम्स ऑफ
इंडिया', 'द इकनॉमिक्स
टाइम्स', 'महाराष्ट्र टाइम्स' जैसे दैनिक
अखबारों एवं 'फ़िल्मफ़ेयर' व 'फेमिना' जैसी पत्रिकाओं का भी प्रकाशन करती है।
नवभारत टाइम्स के पहले अंक का प्रकाशन 3 अप्रैल 1947 में भारत की स्वतंत्रता से ठीक पहले हुआ था. जिसका स्वामित्व डालमिया के प्रसिद्ध औद्योगिक
परिवार के पास था जिसे बाद में उत्तर प्रदेश के बिजनौर के 'साहू जैन समूह' के 'साहू शांति प्रसाद जैन' ने इसे नियंत्रण में ले लिया
गया।
वर्तमान समय में दिल्ली में करीब 19.7 लाख की पाठक संख्या के साथ यह अखबार
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में छाया हुआ है। हिन्दी मुम्बई में चौथे नम्बर की भाषा
मानी जाती है, इसके बावजूद भी यहाँ इसके पाठक संख्या 4.7
लाख है।
पत्रकारिता का उद्देश्य
पत्रकारिता का प्रमुखा उधेश्य समपूर्ण समाज में नव-संचार, सजीवता,
जागरण, नवस्फूर्ति, सक्रियता और गतमपता
के संदेश का प्रचार और प्रसार करना है।
पत्रकारिता उधेश्य के बारे में राष्ट्रियपिता
महात्मा गांधी ने अपने विचारों इस प्रकार व्यक्त किए थे “पत्रकारिता का पहला
उधेश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना तथा उन्हें व्यक्त करना है दूसरा
उधेश्य जनता में वांछनीय भावनाओ को जागृत करना तथा तीसरा उधेश्य सार्वजनिक दोषों
को निर्भीकतापूर्वक प्रकट करना है।
इस प्रकार पत्रकारिता में जीवन यथार्थ को
अधिकाधिक रूप से समाज को प्रभावित करने की क्षमता होती है, जो विश्व को उचित दशा और दिशा
देती है।
पत्रकारिता का दायित्व-
अभिव्यक्ति की आज़ादी भले ही हमें कानूनी रूप से अपने संविधान से मिली है
मगर वास्तव में हमेंअभिव्यक्ति की आजादी मीडिया द्वारा मिला है। पत्रकारिता आम
आदमी की आवाज़ होती है जिसमें उसकी अपेक्षाएँ,
आकांक्षाएँ और सपने मुखरित होते है। जहां आम आदमी खुद लड़ नहीं सकता
वहाँ उसके लिए पत्रकारिता लड़ती है।
ऐसी स्थाती में पत्रकारिया को दायित्व समाज के
प्रति विशेष योगदान करना पड़ता है की उसका क्षेत्र पत्रकारिता के अंतर्गत आ सकता है
इस प्रकार के पत्रकारिया निम्न दायित्व हो सकते
है-
समाज को उचित दिशा निर्देश देना
गरीब उन्मूलन अभियान
नए नए आविष्कार को लोगों के बीच लाना
विश्व में शांति कायम करना
सामाजिक कुरुतियों को विश्लेषित करना
धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर विचार करना
सरकारी नीतियों का प्रचार-प्रसार करना
सरकारी नीतियों का विश्लेषण और प्रसारण
स्वास्थ्य जगत के प्रति लोगों को सतर्क करना
देश की अखंडता की रक्षा और राष्ट्रियता की
भावना को बढ़ाना
संकटकालीन स्थितियों में राष्ट्र का मनोबल
बढ़ाना
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रसार करना।
समाचार पत्र में अंतर्राष्ट्रीय समाचार
समाचार पत्र में छपने वाले अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का भी कई अलग अलग प्रकार होते है। ये
समाचार देश से जुड़ा तो होता है लेकिन इन समाचारों में समाज के लिए अलग–अलह वर्गों
के लिए महत्वपूर्ण खबरे प्रकाशित किया जाता है।
इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय समाचार का एक अलग पाठक वर्ग होता है-
Ø राष्ट्रिय महत्ता का समाचार
Ø विश्व में घटित घटनाओ से सबंधित समाचार
Ø विश्व शिक्षा सबंधित समाचार
Ø विश्व राजनीति से सबंधित समाचार
Ø स्वस्था सबंधित समाचार
Ø नए आविष्कार संबन्धित समाचार
इनके अलावा भी कई अंतर्राष्ट्रीय की खबरें होती है।
हिन्दूस्तान
समाचार पत्र और नवभारत टाइम्स समाचार पत्र के
माह दिसंबर 2013 के अंकों में प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का
विश्लेषण।
राजनयिक देवयानी खोबरागड़े
माह दिसंबर 2013 के हिंदुस्तान समाचार
पत्र और नवभारत टाइम्स समाचार पत्रों में अमरीका में गिरफ़्तार की गई भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की
मामला छाया रहा।
देवयानी खोबारोगड़े को घेरलू नौकर के
शोषण, कम मेहनताना देने एंव वीज़ा धोखाधड़ी
के आरोप में गिरफ़्ता किया एंव उनकी कपड़े उतारकर तलाशी ली गयी और उन्हें
अपराधियों के साथ रखा गया।
जिसके विरोध में भारत ने भारत में रह
रहे अमरीकी राजनयिक के मौजूदा सुबीधाओं में कटोती किया।
जिस से दोनों देशों के कूटनीतिक
सम्बंधो में गहरी दारार आ गई। दोंनो ही देशों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया
था।
Ø विश्लेषण:-
भारतीय
राजनयिक देवयानी खोबारोगड़े के साथ जो कुछ भी हुआ वह दिल दहलाता है। वह अपनी बच्ची
को छोड़ने स्कूल गई थी वही पर उन्हे गिरफ्तार किया गया और किसी शातिर अपराधियों की
तरह हाथ पीछे कर हथकड़ियों डाल दी गई। मान लिया की देवयानी ने कुछ अमेरिकी कानून का
उल्लंघन किया हो पर एक मित्र देश के राजनयिका के साथ यह सलूक कितना न्यायसंगत है।
दुख: की
बात यह है की यह पहला मामला नहीं है इस से पहले भी अमेरिकियों ने कई नामचीन
भारतियों को जलील किया है।
पूर्व
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व रक्षा मंत्री जोर्ज
फर्नाडिस, अभिनेता शारुख खान, संसद
मीरा कुमार आदि और भी ना जाने कौन-कौन इस शर्मनाक सूची का हिस्सा बना है
अब जरूरत
है एक ठोस विदेश नीति का जो कि बहुत कुछ सपनों पर चलती है, न कि हमारे हुकमरां अपने मुल्क कि इज्जत से ज्यादा खुद अपनी छवि चमकाने मेंमशगूल
रहें। इसलिए परदेश मेंहमें वह इज्जत नहीं मिलती जिसके हम हकदार है।
3 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार पत्र में शीर्षक “
आईआईटी में आसान होगी विदेशी शिक्षक की
नियुक्ति” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर
शिक्षा जगत से सबंधित है।
जहा भारत सरकार ने गृह मंत्रालय ने विदेशी
शिक्षकों को रोजगार वीजा देने पर निर्धारित आय मानदंडों में ढील दी है।
जिस से उम्मीद किया जा रहा है की आईआईटी
संस्थानों में विदेशी टीचरों की राह अब कुछ आसान हो होगी।
Ø विश्लेषण :-
आईआईटी में आसान होगी विदेशी शिक्षक की
नियुक्ति। यह समाचार दो पहलूओं पर ध्यान आकर्षित करती है।
पहला पहलू-
हमारे देश में काबिल शिक्षकों की कमी।
दूसरा पहलू- विदेशी शिक्षको के आगमन से शिक्षा
के गुणवत्ता में बढोत्तरी की उम्मीद है।
आज हमारे अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में से कोई
भी दुनिया के शीर्ष 100 संस्थानों में शामिल नहीं है।
विदेशी नागरिकों के यहां 25,000 डॉलर या इससे
कम की सालाना सैलरी पर जॉब करने की मनाही थी लेकिन अब सरकार ने विदेशी शिक्षकों को
रोजगार वीजा देने पर निर्धारित आय मानदंडों में ढील दी है। अब संस्थान 14000
अमेरिकी डॉलर के सालाना वेतन पर विदेशी शिक्षकों को अपने यहां पढ़ाने के लिए
नियुक्त कर सकेंगे।
इसका सभार यह है कि हमारे तकनीकी अध्ययन कर रहे
छात्रों को विश्व मंच पर दक्षता मिलेगी।
नेल्सन मंडेला
7 दिसंबर 2013 को हिन्दूस्तान समाचार पत्र में शीर्षक “मंडेला से मदीबा तक” का खबर प्रकाशित किया। वही नवभारत टाइम्स ने भी किस खापर को अपने पन्नो पर
विस्तार से जगह दिया।
यह खबर है दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति
नेल्सन मंडेला की जिनका लंबी बीमारी के बाद 5 दिसंबर को रात 8.50 मिनट पर निधन हो
गया।
हिन्दूस्तान समाचार पत्र प्रकाशित यह खबर
नेल्सन मंडेला के जीवन को समर्पित करता है। अपने जिंदगी के स्वर्णिम 27 साल जेल की
अंधेरी कोठरी में काटने वाले मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे।
Ø विश्लेषण :-
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में अग्रणी
भूमिका निभा कर दुनिया भर में अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके नेल्सन
मंडेला ने ना सिर्फ पूरे अफ्रीकी महाद्वीप को बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों को भी
स्वतंत्रता की भावना से ओत-प्रोत किया।
जिन्होने अपने जिंदगी के सुनहरे 27 वर्ष काल
कोठारी में गुजारने से लेकर दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति तक का सफर
तय किया। जिन्हे सन् 1993 में मंडेला को नोबल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
मंडेला महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों
से प्रेरित थे। मंडेला ने भी हिंसा पर आधारित रंगभेदी शासन के खिलाफ अहिंसा के
माध्यम से संघर्ष किया।
नेलसन मंडेला के निधन पर पूरे विश्व की आखें नम
हो गई। नेल्सन मंडेला को अफ्रिका का गांधी कहा जाता था और उनका भारत से भी अटुट
रिश्ता था। यह पहले अफ्रिकी थे, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया तथा इनके नाम पर भारत में बहुत सारे स्मार्क और सड़के
बनायी गई।
नेल्सन मंडेला रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाने वाले
मशहूर नेता थे जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सबसे मशहूर चेहरों
में गिने जाते थे। आज नेलशन मंडेला अफ्रिका का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के
प्ररेणा स्वरुप है।
भारत-अमेरिकी पुलिस अफसरों की मीटिंग”
7 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार
पत्र में शीर्षक “भारत-अमेरिकी पुलिस अफसरों की मीटिंग” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर भारत और
अमेरिका के शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच बढ़ते अपराध पर काबू पाने के लिए हो
रही मीटिंग
की है।।
दोनों देश के पुलिस प्रमुखों ने
आतंकवाद, साइबर अपराध जैसी चुनौतियों का मुकाबला
करने और प्रमुख शहरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक दूसरे की मदद
और प्रौद्योगिकियों के परस्पर आदान प्रदान को लेकर हाथ मिलाएंगे
विश्लेषण :-
भारत और अमेरिका के शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञों ने आतंकवाद, साइबर अपराध जैसी चुनौतियों का
मुकाबला करने और प्रमुख शहरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक दूसरे
की मदद और प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान को लेकर हाथ मिलाया है।
आज आतंकवाद,
मादक द्रव्यों की तस्करी और साइबर क्राइम से जैसे मुद्दों से पूरा
विश्व परेशान है। इस समस्याओ से निदाद पाने के लिए नए- नए हथकंडो को भी अपना जा
रहा है। साइबर क्राइम ऐसा मुद्दा जो घर बैठे विश्व के किसी भी कोने में अपराध किया
जा सकता है। इस पर लगाम कसने के उद्देश्य से प्रभावशाली पुलिस व्यवस्था के लिए
वैश्विक ‘लिंकेज’ विकसित करने की
आवश्यकता पर जोर दिया जा है।
यूरोप में दो यूनियनों की खींचतान”
8 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार
पत्र में शीर्षक “यूरोप में दो यूनियनों की खींचतान” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर है
यूरोप और रूस के बीच अपने-अपने यूनियन में बाकी बचे देशो को जोड़ने की मची होड़ा को
लेकर है।
एक तरफ जहां यूरोप के यूरोपीय यूनियन
में 28 देश शामिल है वहीं दूसरी ओर रूस के यूरेशिया कस्टम्स यूनियन में
सिर्फ तीन देश है।
यूरोपीय यूनियन की ताकत को बढ़ते देख
रूसी नेताओं में खलबली मची सी मच गई है, उन्हे डर है की कहीं रूस का राजनीतिक प्रभाव
उसकी सीमाओं तक ही सिमट कर न रह जाए।
इसलिए दोनों देश बाकी बचे देशों को
अपने यूनियन में जोड़ने के लिए नए-नए प्रलोभन एंव हथकंडे अपना रहें है
Ø विश्लेषण :-
यूरोप में देशों को अपने साथ रखने को लेकर दो यूनियनों की खींचतान ने रोचक
मोड़ ले लिया है। 28 देशों की यूरोपियन यूनियन में पूर्वी यूरोपीय देशों को शामिल
होते देख कर रूसी नेताओं में खलबली सी मची है।
यूरोपियन संघ (यूरोपियन यूनियन) मुख्यत: यूरोप
में स्थित 28 देशों का एक राजनैतिक एवं एवं आर्थिक मंच है जिनमें आपस में
प्रशासकीय साझेदारी होती है जो संघ के कई या सभी राष्ट्रो पर लागू होती है। इसका
उतपति 1957 में रोम की संधि द्वारा यूरोपिय आर्थिक परिषद के माध्यम से छह यूरोपिय
देशों की आर्थिक भागीदारी से हुआ था। तब से इसमें सदस्य देशों की संख्या में
लगातार बढोत्तरी होती रही और इसकी नीतियों में बहुत से परिवर्तन भी शामिल किये
गये।
पिछले दिनों छह पूर्व यूरोपीय देशों के यूरोपीय
संघ के साथ जुड़ने से जनतांत्रिक यूरोपीय संघ की सीमाएं रूस को छूने लगी है, जिससे रूसी नेताओं में डर होने
लगा कि रूस का राजनीतिक प्रभाव कहीं उसकी सीमाओं तक ही सिमट कर न रह जाए।
इस स्थति से निपटने के लिए रूस ने पूर्व सोवियत
संघ के गणराज्यों के साथ मिल कर यूरेशिया कस्टम्स यूनियन को मजबूत करने में लग गया
है। अब दोनों देश अपने अपने यूनियन में बाकी देशो को जोड़ने में लगे है जिस से देशो
को लेकर खींचातानी का माहौल बन गया है।
आज यूरोपिय संघ में लगभग 500 मिलियन नागरिक है,एवं यह विश्व के सकल घरेलू
उत्पाद का 31% योगदानकर्ता है तथा इसे 2012 में शांति और सुलह, लोकतंत्र और मानव अधिकारों की उन्नति में अपने योगदान के लिए नोबेल शांति
पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
जबकि यूरेशिया कस्टम्स यूनियन कि स्थापना 1
जनवरी 2010 में किया गया तथा इसके सदस्य देशों कि संख्या मात्र तीन है बेलारूस, कजाखस्तान, और रूस।
रूस के एशियाई हिस्से वाले देश तो अब आजाद हो
चुके है। ऐसे में बाकी यूरोप से भी अलग-थलग पड़ जाने के बाद रूस को पहचान के संकट
से जूझना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में रूस को चाहिए कि वह अपने विदेश नीति में
बदलाव लाये तथा पड़ोसी देश के साथ सामंजस्य बनाए।
"सिंगापुर हिंसा"
9 दिसंबर 2013 को हिन्दूस्तान समाचार
पत्र में शीर्षक “सिंगापुर में भारतीय की मौत के बाद
हिंसा भड़की” का खबर प्रकाशित किया। यह खबर है- सिंगापुर
में भारतीय मूल के एक व्यक्ति की बस दुर्घटना में मौत के बाद भड़का दंगे की।
हिंसा की शुरुआत तब हुई जब 'लिटिल इंडिया' नाम से मशहूर ज़िले में एक निजी बस से
कुचलकर 33 साल के एक व्यक्ति की मौत हो गई ।
घटना के बाद क़रीब चार सौ विदेशी
कामगार (मुख्यता भारतीय) सड़कों पर उतर आए, जहां
उनकी पुलिस के साथ झड़प हुई।
हिंसक भीड़ ने पुलिस की गाड़ियों और
एंबुलेंस में आग लगा दी।
इसमें करीब 18 लोग घायल हुए है जिनमें अधिकांश
पुलिस अधिकारी है।जिसके बाद पुलिस ने दक्षिण एशियाई मूल के 28 लोगों को गिरफ़्तार
किया है।
विश्लेषण :-
दक्षिण-पूर्व एशिया में बसा सिंगापुर
पूरी दुनिया में अपनी सुव्यवस्था के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि 40 सालों से
वहां कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ था। पर, यह
शांति बीते साल 8 दिसंबर को भंग हो गयी, जब ‘लिटिल इंडिया’ में हिंसा भड़क उठी। मामल था एक
भारतीय मजूदर शक्तिवेल कुमारवेलु की बस
दुर्घटना में मौत की यह मौत दंगे का रुद्र रूप धरण कर लिया।
यह दो समुदायों के बीच टकराव नहीं था। एक
उपद्रव था, जिसे रोकने आये पुलिसकर्मियों व बचाव
दल को निशाना बनाया गया।
ऐसा लगता
है कि यह यह दंगा
भारतीय मजूदर शक्तिवेल कुमारवेलु की बस दुर्घटना में मौत से नहीं बल्कि प्रवासियों
के संग भेद-भाव एंव उनपर काले रंग एंव सोशल साइटों पर नस्लभेदी टिप्पणी किया जाता
था जिस से प्रवासियों वहाँ के स्थानीय लोगों एंव प्रशासन से न खुश थे जबकि वही
स्थानीय लोगे सिंगापुर की सरकार "विदेशियों का स्वागत करती है, यहां उनके लिए रोजगार पाना भी आसान
है" के नीति से नाखुश थे। खास कर पिछले एक दशक में। सिंगापुरी लोग सार्वजनिक
परिवहन में बढ़ती भीड़ और महंगाई से परेशान है और इसकी वजह वह विदेशी लोगों को
मानते है। भारतीय मजूदर शक्तिवेल कुमारवेलु मौत चंगरी का काम किया
“चीन की बढ़ रही सीनाजोरी”
12 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार
पत्र में शीर्षक “चीन की बढ़ रही सीनाजोरी” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर भारत और
चीन के बीच बढ़ते तनाव को दिखाता है
खबर है भारत के राष्ट्रपति प्रणब
मुखर्जी के अरुणाचल प्रदेश दौरा एंव अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा बताए
जाने से चीन नाराज हुई।
चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना अभिन्न अंग मानता है
तथा समय समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करते रहता है।
Ø विश्लेषण :-
उगते सूरज की धरती अर्थात भारत के अरुणाचल
प्रदेश को चीन अपना हिस्सा मानता है।
चीन का तर्क है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग
इलाके में बौद्ध मठ है जो महायना बुद्धिजम का प्रतीक है। चीन का दावा है कि छठे
दलाई लामा का जन्म यहीं हुआ था, जिससे पता चलता है कि यह तवांग तिब्बत का हिस्सा है। चीन अरुणाचल प्रदेश
के 90 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर अपना दावा करता रहा है।
भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश को लेकर 1981 से अब तक
सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ता के 15 दौर हो चुके है, परंतु अब तक इस मामले में कोई हल नहीं निकल पाया। हर
वर्ष भारतीय सीमा में चीन की घुसपैठ और शरारतें दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है।
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन ने भारत को एक
प्रस्ताव भी दिया था कि चीन कश्मीर से सटे “अक्साई चिन” के इलाके को भारत को दे
देगा और इसके बदले भारत अरुणाचल प्रदेश को छोड़ दे। लकिन भारत ने इस प्रस्ताव को
सिरे से खारिज कर दिया था। चीन आए दिन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को वीज़ा जारी
करता है और इसके पीछे चीन का तर्क है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। दलाई
लामा ने अपने एक बयान में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया था। चीन ने इस
बयान का कड़ा विरोध किया था।
आजादी के पश्चात भारत के साथ रिश्तों में चीन
निरंतर आक्रामक ही रहा। दोनों देशों के बीच अविश्वास का माहौल तो पहले से ही बना
हुआ है, जो दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा
है। अतः हम कह सकते है की चीन का भारत के साथ
विचित्र सा रिश्ता है, जो मित्रता का नकाब पहनकर
शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाता है।
“खतरनाक हो सकता है बांग्लादेश का सायसी संकट”
17 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार
पत्र में शीर्षक “खतरनाक हो सकता है बांग्लादेश का सायसी
संकट” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर है
बांग्लादेश देश के आगामी चुनाव से पहले देश मेंहो रहे हिंसा की
बंगलादेश में विपक्षी दल बीएनपी और
उसके सहयोगियों का चुनाव का बहिष्कार कर रहा है, बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी कि मांग है कि चुनाव से पहले एक निष्पक्ष
कार्य वाहक सरकार हो व एक स्वीकार्य व्यक्ति चुनाव पर नजर रखें। जबकि चुनाव सत्ता
पार्टी और चुनाव आयोग उसके इस मांग पर राजी नहीं दिखी।
जिस से बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के
समर्थक हिंसा पर उतार आये।
Ø विश्लेषण :-
मामला बहरत के पड़ोसी देश बंगला देश का है जहां
जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर को 1971 में बांगलादेश के अजादी के लिए हुए युद्ध के दौरान मानवता के खिलाफ अपराध
में दोषी पाये जाने के कारण फांसी दी गई। वही अब अब्दुल कादिर के समर्थक इसे
राजनीतिक हत्या मानते हुए हिंसा पर उतर आए।
मामला और भी संगीन बनाता जा रहा था, क्यो कि आगामी 5 जनवरी 2014 चुनाव होने वाला है।
इस चुनाव का विपक्षी पार्टी बीएनपी विरोध कर
रही थी उनका कहना था कि प्रधानमंत्री शेख हसीना सर्वदलीय सरकार बना कर चुनाव कर
रही है।
बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी कि मांग है कि चुनाव
से पहले एक निष्पक्ष कार्य वाहक सरकार हो व एक स्वीकार्य व्यक्ति चुनाव पर नजर
रखें।
पिछले 26
नवंबर से देश में जारी हिंसा में 60 लोगों कि
मौत हुई। वही इस मामले पर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी चिंता जाहीर किया। जों कि
बांगलादेश के विकास में अहम भूमिका निभाती है।
“दक्षिण सूडान में 500 की मौत”
22 दिसंबर 2013
को नवभारत टाइम्स समाचार पत्र में
शीर्षक “दक्षिण सूडान में 500 की मौत” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर यह खबर है- दक्षिण सूडान में हो रही हिंसा ही
जहां राजनीति के चक्कर में पिछले दो हफ्ते के भीतर 500 लोग मारे जा चुके है तहा 800 से
ज्यादा लोग घायल हुये। सुडान की स्थति दिन-ब- दिन बद से बत्तर होती जा रही है।
Ø विश्लेषण :-
दशकों तक चले गृहयुद्ध के बाद सूडान से
अलग होकर 2011 में अस्तित्व में आये नए देश दक्षिण
सूडान दुनिया के सबसे नए देशों में एक है. यह प्राकृतिक तेल के लिहाज से भी संपन्न
देश है यह अफ्रीका महाद्वीप के केंद्र में स्थित है। पिछले कुछ दिनों से जातीय
हिंसा के कारण यह गृह युध्य कि स्थित आ खड़ा हुआ। इस स्थिति के जिम्मेदार देश के दो
शीर्ष नेताओं को माना जा रहा है। राष्ट्रपति सल्वा कीर का आरोप है कि पूर्व उप
राष्ट्रपति रीक मसार देश में तख्ता पलट करना चाह रहे है और वह अपने समर्थकों के
साथ हिंसा पर उतर आए है जबकि रीक माचर ने इन आरोपों से इनकार किया। मामला जों भी
हो लेकिन इन दोनों नेताओ के राजनीति में हजारो लोग मारे जा चुके है। स्थिति इतना
गंभीर हो गयी है कि अमेरिका ने अपने सारे कर्मचारी को वापस बुला लेने का फैसला लिया।
वास्तिकता यह कि सूडान की यह समस्या दिन-ब-दिन भयानक होती जा रही है।
“ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र पर हमला”
30 दिसंबर 2013 को हिंदुस्तान
समाचार पत्र में शीर्षक “ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र पर हमला” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर
ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहें भारतीय छात्र पर रहे हमले को उजागर करता है।
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक 20
वर्षीय भारतीय छात्र पर अज्ञात लुटेरों ने हमला किया है। इस हमले में वह गंभीर रूप
से घायल है और उन्हें सिर पर बड़ी चोटें आई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह
फिलहाल कोमा में है और उनकी स्थिति गंभीर लेकिन स्थिर बनी हुई थी।
Ø विश्लेषण :-
इस खबर
की प्रस्तुति का मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ हो रहे भेद भाव को
बताता है।
ऑस्ट्रेलिया में एक के बाद एक भारतीयों
पर हो रहे हमले निश्चय ही चिंता का विषय है और यह हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे।
हर महीने किसी न किसी छात्र के साथ कोई न कोई घटना की खबर आ ही जाती।
आस्ट्रेलिया में फिर एक भारतीय छात्र पर
नस्ली हमला हुआ आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में 20 वर्षिय भारतीय छात्र के सात लुटेरो
ने उसके साथ लुटपाट कर गम्भीर रुप से घायल कर दिया।
इससे पहले भी भारतीय छात्रों के साथ
नस्लीय भेदभाव के कई गम्भीर मामले सामने आयें है। ये घटनायें दर्शाती है कि
आस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले भारतीय छात्र सुरक्षित नहीं है।
इससे पहले भी क्रिकेट में आस्ट्रेलिया
के खिलाडिय़ों और अंपायर्स के नस्ल भेदी रवैए को पूरी दुनिया देख चुकी है। नस्ल के
आधार पर किसी भी समुदाय के साथ भेदभाव करना आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश को शोभा
नहीं देता इस विषय पर उन्हें गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
जब ऐसी घटनए घटती है तो इस से साफ
जाहिर होता है कि सरकार का रवैया विदेशी छात्रों के खिलाफ नकारात्मक है। जिस से
देशों के अतर्राष्टीय संबध में मन-मुटाव की स्थिति पैदा हो सकती है।
“रूस में रेलवे स्टेशन पर आत्मघाती हमला"
31 दिसंबर 2013 को नवभारत टाइम्स समाचार
पत्र में शीर्षक “रूस में रेलवे स्टेशन पर आत्मघाती
हमला ” नमक खबर प्रकाशित किया। यह खबर रूस मेंबढ़ते
फियादीन हमले की है।
रुस के वोल्गोग्राद शहर स्तिथ रेलवे
स्टेशन पर महिला फियादी ने खुद को उडाया जिसमें
18 लोग मारे गए थे और 50 से ज्यादा लोग गम्भीर रुप से घायल हुए। माना जाता
है कि यह हमला ब्लैक विन्ड़ों नामक आंतकवादी संगठन ने किया। ब्लैक विन्डों उन
महिलाओं को कहा जाता है जो रुस सेना द्वारा मारे गयें कॉकेशियन लडको को बदला लेने
के लिए आत्मघाती हमला करती है।
Ø विश्लेषण :-
रूस में आतंकी हमला कोई नया नहीं है, वहां लंबे समय से आतंकी हमले होते रहे
है। लेकिन ऐसे समय में आतंकी हमला होना जब आगामी फरवरी 2014 से शीतकालीन ओलम्पिक
खेल होने वाले है। यहा धमाका विश्व की ध्यान रूस की ओर खींचती
है। वोल्गोग्राद शहर
सोची से मात्र 690 किलोमीटर दूरी पर है जिस से आतंकियों की नीयत की
साफ पता चलती
कि यह गेम्स को
रोकने या फिर अपनी मांगे मंनवाने के लिए सरकार पर दवाब बनाने की साजिश है।
इन हमलों के बाद रुस में सुरक्षा व्यवस्था को
लेकर सवाल उठने शुरु हो गए । क्या रूस में फिर से आंतकवाद पनप रहा है? ओलमपिक में आने वाली विदेशी खिलाड़ियो
को सुयरक्षा दे पाएगी?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने
देश में अन्य बड़ी घटना की आशंका को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों को हमले की जांच
एंव देश के सभी बड़े एंव सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा का आदेश दिया।
अब राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को
सोची खेलों को सफल बनाने के साथ-साथ विसव
के मानचित्र पर यह दिखाना
है कि रूस एक आधुनिक और सफल राष्ट्र भी है।
निष्कर्ष
1 दिसंबर 2013 से 31 दिसंबर 2013 तक हिन्दुस्तान समाचार पत्र और नवभारत
टाइम्स में प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय एंव भारत से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय खबरों का
अध्ययन करने पर हम देखते है की जहां एक और विश्व के महान नेता नेल्सन मंडेला के
निधन पर पूरे विश्व के आँखें नाम हो जाती है वही दूसरी और भारत सरकार आईआईटी में
विदेशी शिक्षकों के आगवान के रास्ते को आसान बनाया जिस से भारत के शिक्षा के
क्षेत्र में कामयाबी की उम्मीद जागी है।
राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के मामले पर
भारत और अमरीका के विदेश नीति संबंध कड़वा हुआ जबकि रूस के धमाके पर विश्व ने होने
वाले शीतकालीन ओलम्पिक के सुरक्षा पर
चिन्ता चाहिर किया जबकि 'लिटिल इंडिया के दंगे और ऑस्ट्रेलिया
में भारतीय छात्र पर हमला प्रवासी भारतियों के साथ हो रहे भेद-भाव को उजागर करती
है।
अन्तः हम कह सकते है कि दोनों समाचार पत्र अंतर्राष्ट्रीय
के घटना एंव मुद्दा को निष्पक्ष उठता है तथा विश्व में घटित घटनाओ से अपने पाठक
वर्ग को पल पल रुबरु करता है।
GOOD AND HELPFUL
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